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SELECT SUKTA OF MANDALA 07
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 07 Sukta 081
A
A+
६ मैत्रावरुणिर्वसिष्ठ:। उषस: ।प्रगाथ:=(विषमा बृहती, समा सतोबृहती )।
प्रत्यु॑ अदर्श्याय॒त्यु१च्छन्ती॑ दुहि॒ता दि॒वः ।
अपो॒ महि॑ व्ययति॒ चक्ष॑से॒ तमो॒ ज्योति॑ष्कृणोति सू॒नरी॑ ॥१॥
उदु॒स्रिया॑: सृजते॒ सूर्य॒: सचाँ॑ उ॒द्यन्नक्ष॑त्रमर्चि॒वत् ।
तवेदु॑षो॒ व्युषि॒ सूर्य॑स्य च॒ सं भ॒क्तेन॑ गमेमहि ॥२॥
प्रति॑ त्वा दुहितर्दिव॒ उषो॑ जी॒रा अ॑भुत्स्महि ।
या वह॑सि पु॒रु स्पा॒र्हं व॑नन्वति॒ रत्नं॒ न दा॒शुषे॒ मय॑: ॥३॥
उ॒च्छन्ती॒ या कृ॒णोषि॑ मं॒हना॑ महि प्र॒ख्यै दे॑वि॒ स्व॑र्दृ॒शे ।
तस्या॑स्ते रत्न॒भाज॑ ईमहे व॒यं स्याम॑ मा॒तुर्न सू॒नव॑: ॥४॥
तच्चि॒त्रं राध॒ आ भ॒रोषो॒ यद्दी॑र्घ॒श्रुत्त॑मम् ।
यत्ते॑ दिवो दुहितर्मर्त॒भोज॑नं॒ तद्रा॑स्व भु॒नजा॑महै ॥५॥
श्रव॑: सू॒रिभ्यो॑ अ॒मृतं॑ वसुत्व॒नं वाजाँ॑ अ॒स्मभ्यं॒ गोम॑तः ।
चो॒द॒यि॒त्री म॒घोन॑: सू॒नृता॑वत्यु॒षा उ॑च्छ॒दप॒ स्रिध॑: ॥६॥
प्रत्यु॑ अदर्श्याय॒त्यु१च्छन्ती॑ दुहि॒ता दि॒वः ।
अपो॒ महि॑ व्ययति॒ चक्ष॑से॒ तमो॒ ज्योति॑ष्कृणोति सू॒नरी॑ ॥१॥
उदु॒स्रिया॑: सृजते॒ सूर्य॒: सचाँ॑ उ॒द्यन्नक्ष॑त्रमर्चि॒वत् ।
तवेदु॑षो॒ व्युषि॒ सूर्य॑स्य च॒ सं भ॒क्तेन॑ गमेमहि ॥२॥
प्रति॑ त्वा दुहितर्दिव॒ उषो॑ जी॒रा अ॑भुत्स्महि ।
या वह॑सि पु॒रु स्पा॒र्हं व॑नन्वति॒ रत्नं॒ न दा॒शुषे॒ मय॑: ॥३॥
उ॒च्छन्ती॒ या कृ॒णोषि॑ मं॒हना॑ महि प्र॒ख्यै दे॑वि॒ स्व॑र्दृ॒शे ।
तस्या॑स्ते रत्न॒भाज॑ ईमहे व॒यं स्याम॑ मा॒तुर्न सू॒नव॑: ॥४॥
तच्चि॒त्रं राध॒ आ भ॒रोषो॒ यद्दी॑र्घ॒श्रुत्त॑मम् ।
यत्ते॑ दिवो दुहितर्मर्त॒भोज॑नं॒ तद्रा॑स्व भु॒नजा॑महै ॥५॥
श्रव॑: सू॒रिभ्यो॑ अ॒मृतं॑ वसुत्व॒नं वाजाँ॑ अ॒स्मभ्यं॒ गोम॑तः ।
चो॒द॒यि॒त्री म॒घोन॑: सू॒नृता॑वत्यु॒षा उ॑च्छ॒दप॒ स्रिध॑: ॥६॥