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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 137
A
A+
३ परुच्छेपो दैवोदासिः। मित्रावरुणौ।अतिशक्वरी।
सु॒षु॒मा या॑त॒मद्रि॑भि॒र्गोश्री॑ता मत्स॒रा इ॒मे सोमा॑सो मत्स॒रा इ॒मे ।
आ रा॑जाना दिविस्पृशा ऽस्म॒त्रा ग॑न्त॒मुप॑ नः ।
इ॒मे वां॑ मित्रावरुणा॒ गवा॑शिर॒: सोमा॑: शु॒क्रा गवा॑शिरः ॥१॥
इ॒म आ या॑त॒मिन्द॑व॒: सोमा॑सो॒ दध्या॑शिरः सु॒तासो॒ दध्या॑शिरः ।
उ॒त वा॑मु॒षसो॑ बु॒धि सा॒कं सूर्य॑स्य र॒श्मिभि॑: ।
सु॒तो मि॒त्राय॒ वरु॑णाय पी॒तये॒ चारु॑र्ऋ॒ताय॑ पी॒तये॑ ॥२॥
तां वां॑ धे॒नुं न वा॑स॒रीमं॒शुं दु॑ह॒न्त्यद्रि॑भि॒: सोमं॑ दुह॒न्त्यद्रि॑भिः ।
अ॒स्म॒त्रा ग॑न्त॒मुप॑ नो॒ऽर्वाञ्चा॒ सोम॑पीतये ।
अ॒यं वां॑ मित्रावरुणा॒ नृभि॑: सु॒तः सोम॒ आ पी॒तये॑ सु॒तः ॥३॥
सु॒षु॒मा या॑त॒मद्रि॑भि॒र्गोश्री॑ता मत्स॒रा इ॒मे सोमा॑सो मत्स॒रा इ॒मे ।
आ रा॑जाना दिविस्पृशा ऽस्म॒त्रा ग॑न्त॒मुप॑ नः ।
इ॒मे वां॑ मित्रावरुणा॒ गवा॑शिर॒: सोमा॑: शु॒क्रा गवा॑शिरः ॥१॥
इ॒म आ या॑त॒मिन्द॑व॒: सोमा॑सो॒ दध्या॑शिरः सु॒तासो॒ दध्या॑शिरः ।
उ॒त वा॑मु॒षसो॑ बु॒धि सा॒कं सूर्य॑स्य र॒श्मिभि॑: ।
सु॒तो मि॒त्राय॒ वरु॑णाय पी॒तये॒ चारु॑र्ऋ॒ताय॑ पी॒तये॑ ॥२॥
तां वां॑ धे॒नुं न वा॑स॒रीमं॒शुं दु॑ह॒न्त्यद्रि॑भि॒: सोमं॑ दुह॒न्त्यद्रि॑भिः ।
अ॒स्म॒त्रा ग॑न्त॒मुप॑ नो॒ऽर्वाञ्चा॒ सोम॑पीतये ।
अ॒यं वां॑ मित्रावरुणा॒ नृभि॑: सु॒तः सोम॒ आ पी॒तये॑ सु॒तः ॥३॥