SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 01
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 066
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
- 088
- 089
- 090
- 091
- 092
- 093
- 094
- 095
- 096
- 097
- 098
- 099
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
- 115
- 116
- 117
- 118
- 119
- 120
- 121
- 122
- 123
- 124
- 125
- 126
- 127
- 128
- 129
- 130
- 131
- 132
- 133
- 134
- 135
- 136
- 137
- 138
- 139
- 140
- 141
- 142
- 143
- 144
- 145
- 146
- 147
- 148
- 149
- 150
- 151
- 152
- 153
- 154
- 155
- 156
- 157
- 158
- 159
- 160
- 161
- 162
- 163
- 164
- 165
- 166
- 167
- 168
- 169
- 170
- 171
- 172
- 173
- 174
- 175
- 176
- 177
- 178
- 179
- 180
- 181
- 182
- 183
- 184
- 185
- 186
- 187
- 188
- 189
- 190
- 191
Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 015
A
A+
१२ मेधातिथिः काण्वः। (प्रतिदैवतं ऋतुसहितम्), १ इन्द्रः, २ मरुतः, ३ त्वष्टा, ४ अग्निः, ५ इन्द्रः, ६
मित्रावरुणौ, ७-१० द्रविणोदाः, ११ अश्विनौ, १२अग्निः। गायत्री।
इन्द्र॒ सोमं॒ पिब॑ ऋ॒तुना ऽऽ त्वा॑ विश॒न्त्विन्द॑वः । म॒त्स॒रास॒स्तदो॑कसः ॥१॥
मरु॑त॒: पिब॑त ऋ॒तुना॑ पो॒त्राद् य॒ज्ञं पु॑नीतन । यू॒यं हि ष्ठा सु॑दानवः ॥२॥
अ॒भि य॒ज्ञं गृ॑णीहि नो॒ ग्नावो॒ नेष्ट॒: पिब॑ ऋ॒तुना॑ । त्वं हि र॑त्न॒धा असि॑ ॥३॥
अग्ने॑ दे॒वाँ इ॒हा व॑ह सा॒दया॒ योनि॑षु त्रि॒षु । परि॑ भूष॒ पिब॑ ऋ॒तुना॑ ॥४॥
ब्राह्म॑णादिन्द्र॒ राध॑स॒: पिबा॒ सोम॑मृ॒तूँरनु॑ । तवेद्धि स॒ख्यमस्तृ॑तम् ॥५॥
यु॒वं दक्षं॑ धृतव्रत॒ मित्रा॑वरुण दू॒ळभ॑म् । ऋ॒तुना॑ य॒ज्ञमा॑शाथे ॥६॥
द्र॒वि॒णो॒दा द्रवि॑णसो॒ ग्राव॑हस्तासो अध्व॒रे । य॒ज्ञेषु॑ दे॒वमी॑ळते ॥७॥
द्र॒वि॒णो॒दा द॑दातु नो॒ वसू॑नि॒ यानि॑ शृण्वि॒रे । दे॒वेषु॒ ता व॑नामहे ॥८॥
द्र॒वि॒णो॒दाः पि॑पीषति जु॒होत॒ प्र च॑ तिष्ठत । ने॒ष्ट्रादृ॒तुभि॑रिष्यत ॥९॥
यत् त्वा॑ तु॒रीय॑मृ॒तुभि॒र्द्रवि॑णोदो॒ यजा॑महे । अध॑ स्मा नो द॒दिर्भ॑व ॥१०॥॥
अश्वि॑ना॒ पिब॑तं॒ मधु॒ दीद्य॑ग्नी शुचिव्रता । ऋ॒तुना॑ यज्ञवाहसा ॥११॥॥
गार्ह॑पत्येन सन्त्य ऋ॒तुना॑ यज्ञ॒नीर॑सि । दे॒वान् दे॑वय॒ते य॑ज ॥१२॥
मित्रावरुणौ, ७-१० द्रविणोदाः, ११ अश्विनौ, १२अग्निः। गायत्री।
इन्द्र॒ सोमं॒ पिब॑ ऋ॒तुना ऽऽ त्वा॑ विश॒न्त्विन्द॑वः । म॒त्स॒रास॒स्तदो॑कसः ॥१॥
मरु॑त॒: पिब॑त ऋ॒तुना॑ पो॒त्राद् य॒ज्ञं पु॑नीतन । यू॒यं हि ष्ठा सु॑दानवः ॥२॥
अ॒भि य॒ज्ञं गृ॑णीहि नो॒ ग्नावो॒ नेष्ट॒: पिब॑ ऋ॒तुना॑ । त्वं हि र॑त्न॒धा असि॑ ॥३॥
अग्ने॑ दे॒वाँ इ॒हा व॑ह सा॒दया॒ योनि॑षु त्रि॒षु । परि॑ भूष॒ पिब॑ ऋ॒तुना॑ ॥४॥
ब्राह्म॑णादिन्द्र॒ राध॑स॒: पिबा॒ सोम॑मृ॒तूँरनु॑ । तवेद्धि स॒ख्यमस्तृ॑तम् ॥५॥
यु॒वं दक्षं॑ धृतव्रत॒ मित्रा॑वरुण दू॒ळभ॑म् । ऋ॒तुना॑ य॒ज्ञमा॑शाथे ॥६॥
द्र॒वि॒णो॒दा द्रवि॑णसो॒ ग्राव॑हस्तासो अध्व॒रे । य॒ज्ञेषु॑ दे॒वमी॑ळते ॥७॥
द्र॒वि॒णो॒दा द॑दातु नो॒ वसू॑नि॒ यानि॑ शृण्वि॒रे । दे॒वेषु॒ ता व॑नामहे ॥८॥
द्र॒वि॒णो॒दाः पि॑पीषति जु॒होत॒ प्र च॑ तिष्ठत । ने॒ष्ट्रादृ॒तुभि॑रिष्यत ॥९॥
यत् त्वा॑ तु॒रीय॑मृ॒तुभि॒र्द्रवि॑णोदो॒ यजा॑महे । अध॑ स्मा नो द॒दिर्भ॑व ॥१०॥॥
अश्वि॑ना॒ पिब॑तं॒ मधु॒ दीद्य॑ग्नी शुचिव्रता । ऋ॒तुना॑ यज्ञवाहसा ॥११॥॥
गार्ह॑पत्येन सन्त्य ऋ॒तुना॑ यज्ञ॒नीर॑सि । दे॒वान् दे॑वय॒ते य॑ज ॥१२॥