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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 07 Sukta 024
A
A+
६ मैत्रावरुणिर्वसिष्ठ:। इन्द्र: । त्रिष्टुप् ।
योनि॑ष्ट इन्द्र॒ सद॑ने अकारि॒ तमा नृभि॑: पुरुहूत॒ प्र या॑हि ।
असो॒ यथा॑ नोऽवि॒ता वृ॒धे च॒ ददो॒ वसू॑नि म॒मद॑श्च॒ सोमै॑: ॥१॥
गृ॒भी॒तं ते॒ मन॑ इन्द्र द्वि॒बर्हा॑: सु॒तः सोम॒: परि॑षिक्ता॒ मधू॑नि ।
विसृ॑ष्टधेना भरते सुवृ॒क्तिरि॒यमिन्द्रं॒ जोहु॑वती मनी॒षा ॥२॥
आ नो॑ दि॒व आ पृ॑थि॒व्या ऋ॑जीषिन्नि॒दं ब॒र्हिः सो॑म॒पेया॑य याहि ।
वह॑न्तु त्वा॒ हर॑यो म॒द्र्य॑ञ्चमाङ्गू॒षमच्छा॑ त॒वसं॒ मदा॑य ॥३॥
आ नो॒ विश्वा॑भिरू॒तिभि॑: स॒जोषा॒ ब्रह्म॑ जुषा॒णो ह॑र्यश्व याहि ।
वरी॑वृज॒त्स्थवि॑रेभिः सुशिप्रा॒ऽस्मे दध॒द्वृष॑णं॒ शुष्म॑मिन्द्र ॥४॥
ए॒ष स्तोमो॑ म॒ह उ॒ग्राय॒ वाहे॑ धु॒री॒३वात्यो॒ न वा॒जय॑न्नधायि ।
इन्द्र॑ त्वा॒यम॒र्क ई॑ट्टे॒ वसू॑नां दि॒वी॑व॒ द्यामधि॑ न॒: श्रोम॑तं धाः ॥५॥
ए॒वा न॑ इन्द्र॒ वार्य॑स्य पूर्धि॒ प्र ते॑ म॒हीं सु॑म॒तिं वे॑विदाम ।
इषं॑ पिन्व म॒घव॑द्भ्यः सु॒वीरां॑ यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥६॥
योनि॑ष्ट इन्द्र॒ सद॑ने अकारि॒ तमा नृभि॑: पुरुहूत॒ प्र या॑हि ।
असो॒ यथा॑ नोऽवि॒ता वृ॒धे च॒ ददो॒ वसू॑नि म॒मद॑श्च॒ सोमै॑: ॥१॥
गृ॒भी॒तं ते॒ मन॑ इन्द्र द्वि॒बर्हा॑: सु॒तः सोम॒: परि॑षिक्ता॒ मधू॑नि ।
विसृ॑ष्टधेना भरते सुवृ॒क्तिरि॒यमिन्द्रं॒ जोहु॑वती मनी॒षा ॥२॥
आ नो॑ दि॒व आ पृ॑थि॒व्या ऋ॑जीषिन्नि॒दं ब॒र्हिः सो॑म॒पेया॑य याहि ।
वह॑न्तु त्वा॒ हर॑यो म॒द्र्य॑ञ्चमाङ्गू॒षमच्छा॑ त॒वसं॒ मदा॑य ॥३॥
आ नो॒ विश्वा॑भिरू॒तिभि॑: स॒जोषा॒ ब्रह्म॑ जुषा॒णो ह॑र्यश्व याहि ।
वरी॑वृज॒त्स्थवि॑रेभिः सुशिप्रा॒ऽस्मे दध॒द्वृष॑णं॒ शुष्म॑मिन्द्र ॥४॥
ए॒ष स्तोमो॑ म॒ह उ॒ग्राय॒ वाहे॑ धु॒री॒३वात्यो॒ न वा॒जय॑न्नधायि ।
इन्द्र॑ त्वा॒यम॒र्क ई॑ट्टे॒ वसू॑नां दि॒वी॑व॒ द्यामधि॑ न॒: श्रोम॑तं धाः ॥५॥
ए॒वा न॑ इन्द्र॒ वार्य॑स्य पूर्धि॒ प्र ते॑ म॒हीं सु॑म॒तिं वे॑विदाम ।
इषं॑ पिन्व म॒घव॑द्भ्यः सु॒वीरां॑ यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥६॥