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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 181
A
A+
९ अगस्त्यो मैत्रावरुणिः । अश्विनौ। त्रिष्टुप्।
कदु॒ प्रेष्टा॑वि॒षां र॑यी॒णाम॑ध्व॒र्यन्ता॒ यदु॑न्निनी॒थो अ॒पाम् ।
अ॒यं वां॑ य॒ज्ञो अ॑कृत॒ प्रश॑स्तिं॒ वसु॑धिती॒ अवि॑तारा जनानाम् ॥१॥
आ वा॒मश्वा॑स॒: शुच॑यः पय॒स्पा वात॑रंहसो दि॒व्यासो॒ अत्या॑: ।
म॒नो॒जुवो॒ वृष॑णो वी॒तपृ॑ष्ठा॒ एह स्व॒राजो॑ अ॒श्विना॑ वहन्तु ॥२॥
आ वां॒ रथो॒ऽवनि॒र्न प्र॒वत्वा॑न् त्सृ॒प्रव॑न्धुरः सुवि॒ताय॑ गम्याः ।
वृष्ण॑: स्थातारा॒ मन॑सो॒ जवी॑यानहम्पू॒र्वो य॑ज॒तो धि॑ष्ण्या॒ यः ॥३॥
इ॒हेह॑ जा॒ता सम॑वावशीतामरे॒पसा॑ त॒न्वा॒३ नाम॑भि॒: स्वैः ।
जि॒ष्णुर्वा॑म॒न्यः सुम॑खस्य सू॒रिर्दि॒वो अ॒न्यः सु॒भग॑: पु॒त्र ऊ॑हे ॥४॥
प्र वां॑ निचे॒रुः क॑कु॒हो वशाँ॒ अनु॑ पि॒शङ्ग॑रूप॒: सद॑नानि गम्याः ।
हरी॑ अ॒न्यस्य॑ पी॒पय॑न्त॒ वाजै॑र्म॒थ्रा रजां॑स्यश्विना॒ वि घोषै॑: ॥
५प्र वां॑ श॒रद्वा॑न् वृष॒भो न नि॒ष्षाट् पू॒र्वीरिष॑श्चरति॒ मध्व॑ इ॒ष्णन् ।
एवै॑र॒न्यस्य॑ पी॒पय॑न्त॒ वाजै॒र्वेष॑न्तीरू॒र्ध्वा न॒द्यो॑ न॒ आगु॑: ॥६॥
अस॑र्जि वां॒ स्थवि॑रा वेधसा॒ गीर्बा॒ळहे अ॑श्विना त्रे॒धा क्षर॑न्ती ।
उप॑स्तुताववतं॒ नाध॑मानं॒ याम॒न्नया॑मञ्छृणुतं॒ हवं॑ मे ॥७॥
उ॒त स्या वां॒ रुश॑तो॒ वप्स॑सो॒ गीस्त्रि॑ब॒र्हिषि॒ सद॑सि पिन्वते॒ नॄन् ।
वृषा॑ वां मे॒घो वृ॑षणा पीपाय॒ गोर्न सेके॒ मनु॑षो दश॒स्यन् ॥८॥
यु॒वां पू॒षेवा॑श्विना॒ पुरं॑धिर॒ग्निमु॒षां न ज॑रते ह॒विष्मा॑न् ।
हु॒वे यद् वां॑ वरिव॒स्या गृ॑णा॒नो वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥९॥
कदु॒ प्रेष्टा॑वि॒षां र॑यी॒णाम॑ध्व॒र्यन्ता॒ यदु॑न्निनी॒थो अ॒पाम् ।
अ॒यं वां॑ य॒ज्ञो अ॑कृत॒ प्रश॑स्तिं॒ वसु॑धिती॒ अवि॑तारा जनानाम् ॥१॥
आ वा॒मश्वा॑स॒: शुच॑यः पय॒स्पा वात॑रंहसो दि॒व्यासो॒ अत्या॑: ।
म॒नो॒जुवो॒ वृष॑णो वी॒तपृ॑ष्ठा॒ एह स्व॒राजो॑ अ॒श्विना॑ वहन्तु ॥२॥
आ वां॒ रथो॒ऽवनि॒र्न प्र॒वत्वा॑न् त्सृ॒प्रव॑न्धुरः सुवि॒ताय॑ गम्याः ।
वृष्ण॑: स्थातारा॒ मन॑सो॒ जवी॑यानहम्पू॒र्वो य॑ज॒तो धि॑ष्ण्या॒ यः ॥३॥
इ॒हेह॑ जा॒ता सम॑वावशीतामरे॒पसा॑ त॒न्वा॒३ नाम॑भि॒: स्वैः ।
जि॒ष्णुर्वा॑म॒न्यः सुम॑खस्य सू॒रिर्दि॒वो अ॒न्यः सु॒भग॑: पु॒त्र ऊ॑हे ॥४॥
प्र वां॑ निचे॒रुः क॑कु॒हो वशाँ॒ अनु॑ पि॒शङ्ग॑रूप॒: सद॑नानि गम्याः ।
हरी॑ अ॒न्यस्य॑ पी॒पय॑न्त॒ वाजै॑र्म॒थ्रा रजां॑स्यश्विना॒ वि घोषै॑: ॥
५प्र वां॑ श॒रद्वा॑न् वृष॒भो न नि॒ष्षाट् पू॒र्वीरिष॑श्चरति॒ मध्व॑ इ॒ष्णन् ।
एवै॑र॒न्यस्य॑ पी॒पय॑न्त॒ वाजै॒र्वेष॑न्तीरू॒र्ध्वा न॒द्यो॑ न॒ आगु॑: ॥६॥
अस॑र्जि वां॒ स्थवि॑रा वेधसा॒ गीर्बा॒ळहे अ॑श्विना त्रे॒धा क्षर॑न्ती ।
उप॑स्तुताववतं॒ नाध॑मानं॒ याम॒न्नया॑मञ्छृणुतं॒ हवं॑ मे ॥७॥
उ॒त स्या वां॒ रुश॑तो॒ वप्स॑सो॒ गीस्त्रि॑ब॒र्हिषि॒ सद॑सि पिन्वते॒ नॄन् ।
वृषा॑ वां मे॒घो वृ॑षणा पीपाय॒ गोर्न सेके॒ मनु॑षो दश॒स्यन् ॥८॥
यु॒वां पू॒षेवा॑श्विना॒ पुरं॑धिर॒ग्निमु॒षां न ज॑रते ह॒विष्मा॑न् ।
हु॒वे यद् वां॑ वरिव॒स्या गृ॑णा॒नो वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥९॥