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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 179
A
A+
(६) १-२ लोपामुद्रा, ३-४ अगस्त्यो मैत्रावरुणिः, ५-६ अगस्त्यशिष्यो ब्रह्मचारी। रतिः। त्रिष्टुप्, ५ बृहती।
पू॒र्वीर॒हं श॒रद॑: शश्रमा॒णा दो॒षा वस्तो॑रु॒षसो॑ ज॒रय॑न्तीः ।
मि॒नाति॒ श्रियं॑ जरि॒मा त॒नूना॒मप्यू॒ नु पत्नी॒र्वृष॑णो जगम्युः ॥१
ये चि॒द्धि पूर्व॑ ऋत॒साप॒ आस॑न् त्सा॒कं दे॒वेभि॒रव॑दन्नृ॒तानि॑ ।
ते चि॒दवा॑सुर्न॒ह्यन्त॑मा॒पुः समू॒ नु पत्नी॒र्वृष॑भिर्जगम्युः ॥२
न मृषा॑ श्रा॒न्तं यदव॑न्ति दे॒वा विश्वा॒ इत् स्पृधो॑ अ॒भ्य॑श्नवाव ।
जया॒वेदत्र॑ श॒तनी॑थमा॒जिं यत् स॒म्यञ्चा॑ मिथु॒नाव॒भ्यजा॑व ॥३
न॒दस्य॑ मा रुध॒तः काम॒ आग॑न्नि॒त आजा॑तो अ॒मुत॒: कुत॑श्चित् ।
लोपा॑मुद्रा॒ वृष॑णं॒ नी रि॑णाति॒ धीर॒मधी॑रा धयति श्व॒सन्त॑म् ॥४
इ॒मं नु सोम॒मन्ति॑तो हृ॒त्सु पी॒तमुप॑ ब्रुवे ।
यत् सी॒माग॑श्चकृ॒मा तत् सु मृ॑ळतु पुलु॒कामो॒ हि मर्त्य॑: ॥५
अ॒गस्त्य॒: खन॑मानः ख॒नित्रै॑: प्र॒जामप॑त्यं॒ बल॑मि॒च्छमा॑नः ।
उ॒भौ वर्णा॒वृषि॑रु॒ग्रः पु॑पोष स॒त्या दे॒वेष्वा॒शिषो॑ जगाम ॥६
पू॒र्वीर॒हं श॒रद॑: शश्रमा॒णा दो॒षा वस्तो॑रु॒षसो॑ ज॒रय॑न्तीः ।
मि॒नाति॒ श्रियं॑ जरि॒मा त॒नूना॒मप्यू॒ नु पत्नी॒र्वृष॑णो जगम्युः ॥१
ये चि॒द्धि पूर्व॑ ऋत॒साप॒ आस॑न् त्सा॒कं दे॒वेभि॒रव॑दन्नृ॒तानि॑ ।
ते चि॒दवा॑सुर्न॒ह्यन्त॑मा॒पुः समू॒ नु पत्नी॒र्वृष॑भिर्जगम्युः ॥२
न मृषा॑ श्रा॒न्तं यदव॑न्ति दे॒वा विश्वा॒ इत् स्पृधो॑ अ॒भ्य॑श्नवाव ।
जया॒वेदत्र॑ श॒तनी॑थमा॒जिं यत् स॒म्यञ्चा॑ मिथु॒नाव॒भ्यजा॑व ॥३
न॒दस्य॑ मा रुध॒तः काम॒ आग॑न्नि॒त आजा॑तो अ॒मुत॒: कुत॑श्चित् ।
लोपा॑मुद्रा॒ वृष॑णं॒ नी रि॑णाति॒ धीर॒मधी॑रा धयति श्व॒सन्त॑म् ॥४
इ॒मं नु सोम॒मन्ति॑तो हृ॒त्सु पी॒तमुप॑ ब्रुवे ।
यत् सी॒माग॑श्चकृ॒मा तत् सु मृ॑ळतु पुलु॒कामो॒ हि मर्त्य॑: ॥५
अ॒गस्त्य॒: खन॑मानः ख॒नित्रै॑: प्र॒जामप॑त्यं॒ बल॑मि॒च्छमा॑नः ।
उ॒भौ वर्णा॒वृषि॑रु॒ग्रः पु॑पोष स॒त्या दे॒वेष्वा॒शिषो॑ जगाम ॥६