SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 01
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 066
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
- 088
- 089
- 090
- 091
- 092
- 093
- 094
- 095
- 096
- 097
- 098
- 099
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
- 115
- 116
- 117
- 118
- 119
- 120
- 121
- 122
- 123
- 124
- 125
- 126
- 127
- 128
- 129
- 130
- 131
- 132
- 133
- 134
- 135
- 136
- 137
- 138
- 139
- 140
- 141
- 142
- 143
- 144
- 145
- 146
- 147
- 148
- 149
- 150
- 151
- 152
- 153
- 154
- 155
- 156
- 157
- 158
- 159
- 160
- 161
- 162
- 163
- 164
- 165
- 166
- 167
- 168
- 169
- 170
- 171
- 172
- 173
- 174
- 175
- 176
- 177
- 178
- 179
- 180
- 181
- 182
- 183
- 184
- 185
- 186
- 187
- 188
- 189
- 190
- 191
Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 171
A
A+
६ अगस्त्यो मैत्रावरुणिः । मरुतः,३-६ मरुत्वानिन्द्रः। त्रिष्टुप्।
प्रति॑ व ए॒ना नम॑सा॒हमे॑मि सू॒क्तेन॑ भिक्षे सुम॒तिं तु॒राणा॑म् ।
र॒रा॒णता॑ मरुतो वे॒द्याभि॒र्नि हेळो॑ ध॒त्त वि मु॑चध्व॒मश्वा॑न् ॥१॥
ए॒ष व॒: स्तोमो॑ मरुतो॒ नम॑स्वान् हृ॒दा त॒ष्टो मन॑सा धायि देवाः ।
उपे॒मा या॑त॒ मन॑सा जुषा॒णा यू॒यं हि ष्ठा नम॑स॒ इद् वृ॒धास॑: ॥२॥
स्तु॒तासो॑ नो म॒रुतो॑ मृळयन्तू॒त स्तु॒तो म॒घवा॒ शम्भ॑विष्ठः ।
ऊ॒र्ध्वा न॑: सन्तु को॒म्या वना॒न्यहा॑नि॒ विश्वा॑ मरुतो जिगी॒षा ॥३॥
अ॒स्माद॒हं त॑वि॒षादीष॑माण॒ इन्द्रा॑द् भि॒या म॑रुतो॒ रेज॑मानः ।
यु॒ष्मभ्यं॑ ह॒व्या निशि॑तान्यास॒न् तान्या॒रे च॑कृमा मृ॒ळता॑ नः ॥४॥
येन॒ माना॑सश्चि॒तय॑न्त उ॒स्रा व्यु॑ष्टिषु॒ शव॑सा॒ शश्व॑तीनाम् ।
स नो॑ म॒रुद्भि॑र्वृषभ॒ श्रवो॑ धा उ॒ग्र उ॒ग्रेभि॒: स्थवि॑रः सहो॒दाः ॥५॥
त्वं पा॑हीन्द्र॒ सही॑यसो॒ नॄन् भवा॑ म॒रुद्भि॒रव॑यातहेळाः ।
सु॒प्र॒के॒तेभि॑: सास॒हिर्दधा॑नो वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥६॥
प्रति॑ व ए॒ना नम॑सा॒हमे॑मि सू॒क्तेन॑ भिक्षे सुम॒तिं तु॒राणा॑म् ।
र॒रा॒णता॑ मरुतो वे॒द्याभि॒र्नि हेळो॑ ध॒त्त वि मु॑चध्व॒मश्वा॑न् ॥१॥
ए॒ष व॒: स्तोमो॑ मरुतो॒ नम॑स्वान् हृ॒दा त॒ष्टो मन॑सा धायि देवाः ।
उपे॒मा या॑त॒ मन॑सा जुषा॒णा यू॒यं हि ष्ठा नम॑स॒ इद् वृ॒धास॑: ॥२॥
स्तु॒तासो॑ नो म॒रुतो॑ मृळयन्तू॒त स्तु॒तो म॒घवा॒ शम्भ॑विष्ठः ।
ऊ॒र्ध्वा न॑: सन्तु को॒म्या वना॒न्यहा॑नि॒ विश्वा॑ मरुतो जिगी॒षा ॥३॥
अ॒स्माद॒हं त॑वि॒षादीष॑माण॒ इन्द्रा॑द् भि॒या म॑रुतो॒ रेज॑मानः ।
यु॒ष्मभ्यं॑ ह॒व्या निशि॑तान्यास॒न् तान्या॒रे च॑कृमा मृ॒ळता॑ नः ॥४॥
येन॒ माना॑सश्चि॒तय॑न्त उ॒स्रा व्यु॑ष्टिषु॒ शव॑सा॒ शश्व॑तीनाम् ।
स नो॑ म॒रुद्भि॑र्वृषभ॒ श्रवो॑ धा उ॒ग्र उ॒ग्रेभि॒: स्थवि॑रः सहो॒दाः ॥५॥
त्वं पा॑हीन्द्र॒ सही॑यसो॒ नॄन् भवा॑ म॒रुद्भि॒रव॑यातहेळाः ।
सु॒प्र॒के॒तेभि॑: सास॒हिर्दधा॑नो वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥६॥