SELECT MANDALA
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 160
A
A+
५ दीर्घतमा औचथ्यः। द्यावापृथिवी। जगती।
ते हि द्यावा॑पृथि॒वी वि॒श्वश॑म्भुव ऋ॒ताव॑री॒ रज॑सो धार॒यत्क॑वी ।
सु॒जन्म॑नी धि॒षणे॑ अ॒न्तरी॑यते दे॒वो दे॒वी धर्म॑णा॒ सूर्य॒: शुचि॑: ॥१॥
उ॒रु॒व्यच॑सा म॒हिनी॑ अस॒श्चता॑ पि॒ता मा॒ता च॒ भुव॑नानि रक्षतः ।
सु॒धृष्ट॑मे वपु॒ष्ये॒ ३ न रोद॑सी पि॒ता यत् सी॑म॒भि रू॒पैरवा॑सयत् ॥२॥
स वह्नि॑: पु॒त्रः पि॒त्रोः प॒वित्र॑वान् पु॒नाति॒ धीरो॒ भुव॑नानि मा॒यया॑ ।
धे॒नुं च॒ पृश्निं॑ वृष॒भं सु॒रेत॑सं वि॒श्वाहा॑ शु॒क्रं पयो॑ अस्य दुक्षत ॥३॥
अ॒यं दे॒वाना॑म॒पसा॑म॒पस्त॑मो॒ यो ज॒जान॒ रोद॑सी वि॒श्वश॑म्भुवा ।
वि यो म॒मे रज॑सी सुक्रतू॒यया॒ ऽजरे॑भि॒: स्कम्भ॑नेभि॒: समा॑नृचे ॥४॥
ते नो॑ गृणा॒ने म॑हिनी॒ महि॒ श्रव॑: क्ष॒त्रं द्या॑वापृथिवी धासथो बृ॒हत् ।
येना॒भि कृ॒ष्टीस्त॒तना॑म वि॒श्वहा॑ प॒नाय्य॒मोजो॑ अ॒स्मे समि॑न्वतम् ॥५॥
ते हि द्यावा॑पृथि॒वी वि॒श्वश॑म्भुव ऋ॒ताव॑री॒ रज॑सो धार॒यत्क॑वी ।
सु॒जन्म॑नी धि॒षणे॑ अ॒न्तरी॑यते दे॒वो दे॒वी धर्म॑णा॒ सूर्य॒: शुचि॑: ॥१॥
उ॒रु॒व्यच॑सा म॒हिनी॑ अस॒श्चता॑ पि॒ता मा॒ता च॒ भुव॑नानि रक्षतः ।
सु॒धृष्ट॑मे वपु॒ष्ये॒ ३ न रोद॑सी पि॒ता यत् सी॑म॒भि रू॒पैरवा॑सयत् ॥२॥
स वह्नि॑: पु॒त्रः पि॒त्रोः प॒वित्र॑वान् पु॒नाति॒ धीरो॒ भुव॑नानि मा॒यया॑ ।
धे॒नुं च॒ पृश्निं॑ वृष॒भं सु॒रेत॑सं वि॒श्वाहा॑ शु॒क्रं पयो॑ अस्य दुक्षत ॥३॥
अ॒यं दे॒वाना॑म॒पसा॑म॒पस्त॑मो॒ यो ज॒जान॒ रोद॑सी वि॒श्वश॑म्भुवा ।
वि यो म॒मे रज॑सी सुक्रतू॒यया॒ ऽजरे॑भि॒: स्कम्भ॑नेभि॒: समा॑नृचे ॥४॥
ते नो॑ गृणा॒ने म॑हिनी॒ महि॒ श्रव॑: क्ष॒त्रं द्या॑वापृथिवी धासथो बृ॒हत् ।
येना॒भि कृ॒ष्टीस्त॒तना॑म वि॒श्वहा॑ प॒नाय्य॒मोजो॑ अ॒स्मे समि॑न्वतम् ॥५॥