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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 154
A
A+
६ दीर्घतमा औचथ्यः। विष्णुः। त्रिष्टुप्।
विष्णो॒र्नु कं॑ वी॒र्या॑णि॒ प्र वो॑चं॒ यः पार्थि॑वानि विम॒मे रजां॑सि ।
यो अस्क॑भाय॒दुत्त॑रं स॒धस्थं॑ विचक्रमा॒णस्त्रे॒धोरु॑गा॒यः ॥१॥
प्र तद् विष्णु॑: स्तवते वी॒र्ये॑ण मृ॒गो न भी॒मः कु॑च॒रो गि॑रि॒ष्ठाः ।
यस्यो॒रुषु॑ त्रि॒षु वि॒क्रम॑णेष्वधिक्षि॒यन्ति॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ॥२॥
प्र विष्ण॑वे शू॒षमे॑तु॒ मन्म॑ गिरि॒क्षित॑ उरुगा॒याय॒ वृष्णे॑ ।
य इ॒दं दी॒र्घं प्रय॑तं स॒धस्थ॒मेको॑ विम॒मे त्रि॒भिरित् प॒देभि॑: ॥३॥
यस्य॒ त्री पू॒र्णा मधु॑ना प॒दान्यक्षी॑यमाणा स्व॒धया॒ मद॑न्ति ।
य उ॑ त्रि॒धातु॑ पृथि॒वीमु॒त द्यामेको॑ दा॒धार॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ॥४॥
तद॑स्य प्रि॒यम॒भि पाथो॑ अश्यां॒ नरो॒ यत्र॑ देव॒यवो॒ मद॑न्ति ।
उ॒रु॒क्र॒मस्य॒ स हि बन्धु॑रि॒त्था विष्णो॑: प॒दे प॑र॒मे मध्व॒ उत्स॑: ॥५॥
ता वां॒ वास्तू॑न्युश्मसि॒ गम॑ध्यै॒ यत्र॒ गावो॒ भूरि॑शृङ्गा अ॒यास॑: ।
अत्राह॒ तदु॑रुगा॒यस्य॒ वृष्ण॑: पर॒मं प॒दमव॑ भाति॒ भूरि॑ ॥६॥
विष्णो॒र्नु कं॑ वी॒र्या॑णि॒ प्र वो॑चं॒ यः पार्थि॑वानि विम॒मे रजां॑सि ।
यो अस्क॑भाय॒दुत्त॑रं स॒धस्थं॑ विचक्रमा॒णस्त्रे॒धोरु॑गा॒यः ॥१॥
प्र तद् विष्णु॑: स्तवते वी॒र्ये॑ण मृ॒गो न भी॒मः कु॑च॒रो गि॑रि॒ष्ठाः ।
यस्यो॒रुषु॑ त्रि॒षु वि॒क्रम॑णेष्वधिक्षि॒यन्ति॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ॥२॥
प्र विष्ण॑वे शू॒षमे॑तु॒ मन्म॑ गिरि॒क्षित॑ उरुगा॒याय॒ वृष्णे॑ ।
य इ॒दं दी॒र्घं प्रय॑तं स॒धस्थ॒मेको॑ विम॒मे त्रि॒भिरित् प॒देभि॑: ॥३॥
यस्य॒ त्री पू॒र्णा मधु॑ना प॒दान्यक्षी॑यमाणा स्व॒धया॒ मद॑न्ति ।
य उ॑ त्रि॒धातु॑ पृथि॒वीमु॒त द्यामेको॑ दा॒धार॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ॥४॥
तद॑स्य प्रि॒यम॒भि पाथो॑ अश्यां॒ नरो॒ यत्र॑ देव॒यवो॒ मद॑न्ति ।
उ॒रु॒क्र॒मस्य॒ स हि बन्धु॑रि॒त्था विष्णो॑: प॒दे प॑र॒मे मध्व॒ उत्स॑: ॥५॥
ता वां॒ वास्तू॑न्युश्मसि॒ गम॑ध्यै॒ यत्र॒ गावो॒ भूरि॑शृङ्गा अ॒यास॑: ।
अत्राह॒ तदु॑रुगा॒यस्य॒ वृष्ण॑: पर॒मं प॒दमव॑ भाति॒ भूरि॑ ॥६॥