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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 147
A
A+
५ दीर्घतमा औचथ्यः। अग्निः। त्रिष्टुप्।
क॒था ते॑ अग्ने शु॒चय॑न्त आ॒योर्द॑दा॒शुर्वाजे॑भिराशुषा॒णाः ।
उ॒भे यत् तो॒के तन॑ये॒ दधा॑ना ऋ॒तस्य॒ साम॑न् र॒णय॑न्त दे॒वाः ॥१॥
बोधा॑ मे अ॒स्य वच॑सो यविष्ठ॒ मंहि॑ष्ठस्य॒ प्रभृ॑तस्य स्वधावः ।
पीय॑ति त्वो॒ अनु॑ त्वो गृणाति व॒न्दारु॑स्ते त॒न्वं॑ वन्दे अग्ने ॥२॥
ये पा॒यवो॑ मामते॒यं ते॑ अग्ने॒ पश्य॑न्तो अ॒न्धं दु॑रि॒तादर॑क्षन् ।
र॒रक्ष॒ तान् त्सु॒कृतो॑ वि॒श्ववे॑दा॒ दिप्स॑न्त॒ इद् रि॒पवो॒ नाह॑ देभुः ॥३॥
यो नो॑ अग्ने॒ अर॑रिवाँ अघा॒युर॑राती॒वा म॒र्चय॑ति द्व॒येन॑ ।
मन्त्रो॑ गु॒रुः पुन॑रस्तु॒ सो अ॑स्मा॒ अनु॑ मृक्षीष्ट त॒न्वं॑ दुरु॒क्तैः ॥४॥
उ॒त वा॒ यः स॑हस्य प्रवि॒द्वान् मर्तो॒ मर्तं॑ म॒र्चय॑ति द्व॒येन॑ ।
अत॑: पाहि स्तवमान स्तु॒वन्त॒मग्ने॒ माकि॑र्नो दुरि॒ताय॑ धायीः ॥५॥
क॒था ते॑ अग्ने शु॒चय॑न्त आ॒योर्द॑दा॒शुर्वाजे॑भिराशुषा॒णाः ।
उ॒भे यत् तो॒के तन॑ये॒ दधा॑ना ऋ॒तस्य॒ साम॑न् र॒णय॑न्त दे॒वाः ॥१॥
बोधा॑ मे अ॒स्य वच॑सो यविष्ठ॒ मंहि॑ष्ठस्य॒ प्रभृ॑तस्य स्वधावः ।
पीय॑ति त्वो॒ अनु॑ त्वो गृणाति व॒न्दारु॑स्ते त॒न्वं॑ वन्दे अग्ने ॥२॥
ये पा॒यवो॑ मामते॒यं ते॑ अग्ने॒ पश्य॑न्तो अ॒न्धं दु॑रि॒तादर॑क्षन् ।
र॒रक्ष॒ तान् त्सु॒कृतो॑ वि॒श्ववे॑दा॒ दिप्स॑न्त॒ इद् रि॒पवो॒ नाह॑ देभुः ॥३॥
यो नो॑ अग्ने॒ अर॑रिवाँ अघा॒युर॑राती॒वा म॒र्चय॑ति द्व॒येन॑ ।
मन्त्रो॑ गु॒रुः पुन॑रस्तु॒ सो अ॑स्मा॒ अनु॑ मृक्षीष्ट त॒न्वं॑ दुरु॒क्तैः ॥४॥
उ॒त वा॒ यः स॑हस्य प्रवि॒द्वान् मर्तो॒ मर्तं॑ म॒र्चय॑ति द्व॒येन॑ ।
अत॑: पाहि स्तवमान स्तु॒वन्त॒मग्ने॒ माकि॑र्नो दुरि॒ताय॑ धायीः ॥५॥