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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 126
A
A+
७ कक्षीवान् दैर्घतमस औशिजः। (६) स्वनयो भावयव्यः, (७) रोमशा। १-५ स्वनयो भावयव्यः, ६ रोमशा, ७ स्वनयो भावयव्यः। त्रिष्टुप्, ६-७ अनुष्टुप्।
अम॑न्दा॒न् त्स्तोमा॒न् प्र भ॑रे मनी॒षा सिन्धा॒वधि॑ क्षिय॒तो भा॒व्यस्य॑ ।
यो मे॑ स॒हस्र॒ममि॑मीत स॒वान॒तूर्तो॒ राजा॒ श्रव॑ इ॒च्छमा॑नः ॥१॥
श॒तं राज्ञो॒ नाध॑मानस्य नि॒ष्काञ् छ॒तमश्वा॒न् प्रय॑तान् त्स॒द्य आद॑म् ।
श॒तं क॒क्षीवाँ॒ असु॑रस्य॒ गोनां॑ दि॒वि श्रवो॒ऽजर॒मा त॑तान ॥२॥
उप॑ मा श्या॒वाः स्व॒नये॑न द॒त्ता व॒धूम॑न्तो॒ दश॒ रथा॑सो अस्थुः ।
ष॒ष्टिः स॒हस्र॒मनु॒ गव्य॒मागा॒त् सन॑त् क॒क्षीवाँ॑ अभिपि॒त्वे अह्ना॑म् ॥३॥
च॒त्वा॒रिं॒शद् दश॑रथस्य॒ शोणा॑: स॒हस्र॒स्याग्रे॒ श्रेणिं॑ नयन्ति ।
म॒द॒च्युत॑: कृश॒नाव॑तो॒ अत्या॑न् क॒क्षीव॑न्त॒ उद॑मृक्षन्त प॒ज्राः ॥४॥
पूर्वा॒मनु॒ प्रय॑ति॒मा द॑दे व॒स्त्रीन् यु॒क्ताँ अ॒ष्टाव॒रिधा॑यसो॒ गाः ।
सु॒बन्ध॑वो॒ ये वि॒श्या॑ इव॒ व्रा अन॑स्वन्त॒: श्रव॒ ऐष॑न्त प॒ज्राः ॥५॥
आग॑धिता॒ परि॑गधिता॒ या क॑शी॒केव॒ जङ्ग॑हे ।
ददा॑ति॒ मह्यं॒ यादु॑री॒ याशू॑नां भो॒ज्या॑ श॒ता ॥६॥
उपो॑प मे॒ परा॑ मृश॒ मा मे॑ द॒भ्राणि॑ मन्यथाः ।
सर्वा॒हम॑स्मि रोम॒शा ग॒न्धारी॑णामिवावि॒का ॥७॥
अम॑न्दा॒न् त्स्तोमा॒न् प्र भ॑रे मनी॒षा सिन्धा॒वधि॑ क्षिय॒तो भा॒व्यस्य॑ ।
यो मे॑ स॒हस्र॒ममि॑मीत स॒वान॒तूर्तो॒ राजा॒ श्रव॑ इ॒च्छमा॑नः ॥१॥
श॒तं राज्ञो॒ नाध॑मानस्य नि॒ष्काञ् छ॒तमश्वा॒न् प्रय॑तान् त्स॒द्य आद॑म् ।
श॒तं क॒क्षीवाँ॒ असु॑रस्य॒ गोनां॑ दि॒वि श्रवो॒ऽजर॒मा त॑तान ॥२॥
उप॑ मा श्या॒वाः स्व॒नये॑न द॒त्ता व॒धूम॑न्तो॒ दश॒ रथा॑सो अस्थुः ।
ष॒ष्टिः स॒हस्र॒मनु॒ गव्य॒मागा॒त् सन॑त् क॒क्षीवाँ॑ अभिपि॒त्वे अह्ना॑म् ॥३॥
च॒त्वा॒रिं॒शद् दश॑रथस्य॒ शोणा॑: स॒हस्र॒स्याग्रे॒ श्रेणिं॑ नयन्ति ।
म॒द॒च्युत॑: कृश॒नाव॑तो॒ अत्या॑न् क॒क्षीव॑न्त॒ उद॑मृक्षन्त प॒ज्राः ॥४॥
पूर्वा॒मनु॒ प्रय॑ति॒मा द॑दे व॒स्त्रीन् यु॒क्ताँ अ॒ष्टाव॒रिधा॑यसो॒ गाः ।
सु॒बन्ध॑वो॒ ये वि॒श्या॑ इव॒ व्रा अन॑स्वन्त॒: श्रव॒ ऐष॑न्त प॒ज्राः ॥५॥
आग॑धिता॒ परि॑गधिता॒ या क॑शी॒केव॒ जङ्ग॑हे ।
ददा॑ति॒ मह्यं॒ यादु॑री॒ याशू॑नां भो॒ज्या॑ श॒ता ॥६॥
उपो॑प मे॒ परा॑ मृश॒ मा मे॑ द॒भ्राणि॑ मन्यथाः ।
सर्वा॒हम॑स्मि रोम॒शा ग॒न्धारी॑णामिवावि॒का ॥७॥