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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 120
A
A+
१२ कक्षीवान् दैर्घतमस औशिजः। अश्विनौ। (१२ दुःस्वप्ननाशनम्) ।१ गायत्री, २ ककुप्, ३ का- विराट्, ४ नष्टरूपी, ५ तनुशिरा, ६ उष्णिक्, ७ विष्टार-बृहती, ८ कृतिः, ९ विराट्, १०-१२ गायत्री।
का रा॑ध॒द्धोत्रा॑श्विना वां॒ को वां॒ जोष॑ उ॒भयो॑: । क॒था वि॑धा॒त्यप्र॑चेताः ॥१॥
वि॒द्वांसा॒विद् दुर॑: पृच्छे॒दवि॑द्वानि॒त्थाप॑रो अचे॒ताः । नू चि॒न्नु मर्ते॒ अक्रौ॑ ॥२॥
ता वि॒द्वांसा॑ हवामहे वां॒ ता नो॑ वि॒द्वांसा॒ मन्म॑ वोचेतम॒द्य । प्रार्च॒द् दय॑मानो यु॒वाकु॑: ॥३॥
वि पृ॑च्छामि पा॒क्या॒ ३ न दे॒वान् वष॑ट्कृतस्याद्भु॒तस्य॑ दस्रा । पा॒तं च॒ सह्य॑सो यु॒वं च॒ रभ्य॑सो नः ॥४॥
प्र या घोषे॒ भृग॑वाणे॒ न शोभे॒ यया॑ वा॒चा यज॑ति पज्रि॒यो वा॑म् । प्रैष॒युर्न वि॒द्वान् ॥५॥
श्रु॒तं गा॑य॒त्रं तक॑वानस्या॒हं चि॒द्धि रि॒रेभा॑श्विना वाम् । आक्षी शु॑भस्पती॒ दन् ॥६॥
यु॒वं ह्यास्तं॑ म॒हो रन् यु॒वं वा॒ यन्नि॒रत॑तंसतम् । ता नो॑ वसू सुगो॒पा स्या॑तं पा॒तं नो॒ वृका॑दघा॒योः ॥७॥
मा कस्मै॑ धातम॒भ्य॑मि॒त्रिणे॑ नो॒ माकुत्रा॑ नो गृ॒हेभ्यो॑ धे॒नवो॑ गुः । स्त॒ना॒भुजो॒ अशि॑श्वीः ॥८॥
दु॒ही॒यन् मि॒त्रधि॑तये यु॒वाकु॑ रा॒ये च॑ नो मिमी॒तं वाज॑वत्यै । इ॒षे च॑ नो मिमीतं धेनु॒मत्यै॑ ॥९॥
अ॒श्विनो॑रसनं॒ रथ॑मन॒श्वं वा॒जिनी॑वतोः । तेना॒हं भूरि॑ चाकन ॥१०॥
अ॒यं स॑मह मा तनू॒ह्याते॒ जनाँ॒ अनु॑ । सो॒म॒पेयं॑ सु॒खो रथ॑: ॥११॥
अध॒ स्वप्न॑स्य॒ निर्वि॒दे ऽभु॑ञ्जतश्च रे॒वत॑: । उ॒भा ता बस्रि॑ नश्यतः ॥१२॥
का रा॑ध॒द्धोत्रा॑श्विना वां॒ को वां॒ जोष॑ उ॒भयो॑: । क॒था वि॑धा॒त्यप्र॑चेताः ॥१॥
वि॒द्वांसा॒विद् दुर॑: पृच्छे॒दवि॑द्वानि॒त्थाप॑रो अचे॒ताः । नू चि॒न्नु मर्ते॒ अक्रौ॑ ॥२॥
ता वि॒द्वांसा॑ हवामहे वां॒ ता नो॑ वि॒द्वांसा॒ मन्म॑ वोचेतम॒द्य । प्रार्च॒द् दय॑मानो यु॒वाकु॑: ॥३॥
वि पृ॑च्छामि पा॒क्या॒ ३ न दे॒वान् वष॑ट्कृतस्याद्भु॒तस्य॑ दस्रा । पा॒तं च॒ सह्य॑सो यु॒वं च॒ रभ्य॑सो नः ॥४॥
प्र या घोषे॒ भृग॑वाणे॒ न शोभे॒ यया॑ वा॒चा यज॑ति पज्रि॒यो वा॑म् । प्रैष॒युर्न वि॒द्वान् ॥५॥
श्रु॒तं गा॑य॒त्रं तक॑वानस्या॒हं चि॒द्धि रि॒रेभा॑श्विना वाम् । आक्षी शु॑भस्पती॒ दन् ॥६॥
यु॒वं ह्यास्तं॑ म॒हो रन् यु॒वं वा॒ यन्नि॒रत॑तंसतम् । ता नो॑ वसू सुगो॒पा स्या॑तं पा॒तं नो॒ वृका॑दघा॒योः ॥७॥
मा कस्मै॑ धातम॒भ्य॑मि॒त्रिणे॑ नो॒ माकुत्रा॑ नो गृ॒हेभ्यो॑ धे॒नवो॑ गुः । स्त॒ना॒भुजो॒ अशि॑श्वीः ॥८॥
दु॒ही॒यन् मि॒त्रधि॑तये यु॒वाकु॑ रा॒ये च॑ नो मिमी॒तं वाज॑वत्यै । इ॒षे च॑ नो मिमीतं धेनु॒मत्यै॑ ॥९॥
अ॒श्विनो॑रसनं॒ रथ॑मन॒श्वं वा॒जिनी॑वतोः । तेना॒हं भूरि॑ चाकन ॥१०॥
अ॒यं स॑मह मा तनू॒ह्याते॒ जनाँ॒ अनु॑ । सो॒म॒पेयं॑ सु॒खो रथ॑: ॥११॥
अध॒ स्वप्न॑स्य॒ निर्वि॒दे ऽभु॑ञ्जतश्च रे॒वत॑: । उ॒भा ता बस्रि॑ नश्यतः ॥१२॥