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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 110
A
A+
९ कुत्स आङ्गिरसः। ऋभवः। जगती, ५, ९ त्रिष्टुप्।
त॒तं मे॒ अप॒स्तदु॑ तायते॒ पुन॒: स्वादि॑ष्ठा धी॒तिरु॒चथा॑य शस्यते ।
अ॒यं स॑मु॒द्र इ॒ह वि॒श्वदे॑व्य॒: स्वाहा॑कृतस्य॒ समु॑ तृप्णुत ऋभवः ॥१॥
आ॒भो॒गयं॒ प्र यदि॒च्छन्त॒ ऐत॒नापा॑का॒: प्राञ्चो॒ मम॒ के चि॑दा॒पय॑: ।
सौध॑न्वनासश्चरि॒तस्य॑ भू॒मनाग॑च्छत सवि॒तुर्दा॒शुषो॑ गृ॒हम् ॥२॥
तत् स॑वि॒ता वो॑ऽमृत॒त्वमासु॑व॒दगो॑ह्यं॒ यच्छ्र॒वय॑न्त॒ ऐत॑न ।
त्यं चि॑च्चम॒समसु॑रस्य॒ भक्ष॑ण॒मेकं॒ सन्त॑मकृणुता॒ चतु॑र्वयम् ॥३॥
वि॒ष्ट्वी शमी॑ तरणि॒त्वेन॑ वा॒घतो॒ मर्ता॑स॒: सन्तो॑ अमृत॒त्वमा॑नशुः ।
सौ॒ध॒न्व॒ना ऋ॒भव॒: सूर॑चक्षसः संवत्स॒रे सम॑पृच्यन्त धी॒तिभि॑: ॥४॥
क्षेत्र॑मिव॒ वि म॑मु॒स्तेज॑नेनँ॒ एकं॒ पात्र॑मृ॒भवो॒ जेह॑मानम् ।
उप॑स्तुता उप॒मं नाध॑माना॒ अम॑र्त्येषु॒ श्रव॑ इ॒च्छमा॑नाः ॥५॥
आ म॑नी॒षाम॒न्तरि॑क्षस्य॒ नृभ्य॑: स्रु॒चेव॑ घृ॒तं जु॑हवाम वि॒द्मना॑ ।
त॒र॒णि॒त्वा ये पि॒तुर॑स्य सश्चि॒र ऋ॒भवो॒ वाज॑मरुहन् दि॒वो रज॑: ॥६॥
ऋ॒भुर्न॒ इन्द्र॒: शव॑सा॒ नवी॑यानृ॒भुर्वाजे॑भि॒र्वसु॑भि॒र्वसु॑र्द॒दिः ।
यु॒ष्माकं॑ देवा॒ अव॒साह॑नि प्रि॒ये॒ ३ ऽभि ति॑ष्ठेम पृत्सु॒तीरसु॑न्वताम् ॥७॥
निश्चर्म॑ण ऋभवो॒ गाम॑पिंशत॒ सं व॒त्सेना॑सृजता मा॒तरं॒ पुन॑: ।
सौध॑न्वनासः स्वप॒स्यया॑ नरो॒ जिव्री॒ युवा॑ना पि॒तरा॑कृणोतन ॥८॥
वाजे॑भिर्नो॒ वाज॑सातावविड्ढ्यृभु॒माँ इ॑न्द्र चि॒त्रमा द॑र्षि॒ राध॑: ।
तन्नो॑ मि॒त्रो वरु॑णो मामहन्ता॒मदि॑ति॒: सिन्धु॑: पृथि॒वी उ॒त द्यौः ॥९॥
त॒तं मे॒ अप॒स्तदु॑ तायते॒ पुन॒: स्वादि॑ष्ठा धी॒तिरु॒चथा॑य शस्यते ।
अ॒यं स॑मु॒द्र इ॒ह वि॒श्वदे॑व्य॒: स्वाहा॑कृतस्य॒ समु॑ तृप्णुत ऋभवः ॥१॥
आ॒भो॒गयं॒ प्र यदि॒च्छन्त॒ ऐत॒नापा॑का॒: प्राञ्चो॒ मम॒ के चि॑दा॒पय॑: ।
सौध॑न्वनासश्चरि॒तस्य॑ भू॒मनाग॑च्छत सवि॒तुर्दा॒शुषो॑ गृ॒हम् ॥२॥
तत् स॑वि॒ता वो॑ऽमृत॒त्वमासु॑व॒दगो॑ह्यं॒ यच्छ्र॒वय॑न्त॒ ऐत॑न ।
त्यं चि॑च्चम॒समसु॑रस्य॒ भक्ष॑ण॒मेकं॒ सन्त॑मकृणुता॒ चतु॑र्वयम् ॥३॥
वि॒ष्ट्वी शमी॑ तरणि॒त्वेन॑ वा॒घतो॒ मर्ता॑स॒: सन्तो॑ अमृत॒त्वमा॑नशुः ।
सौ॒ध॒न्व॒ना ऋ॒भव॒: सूर॑चक्षसः संवत्स॒रे सम॑पृच्यन्त धी॒तिभि॑: ॥४॥
क्षेत्र॑मिव॒ वि म॑मु॒स्तेज॑नेनँ॒ एकं॒ पात्र॑मृ॒भवो॒ जेह॑मानम् ।
उप॑स्तुता उप॒मं नाध॑माना॒ अम॑र्त्येषु॒ श्रव॑ इ॒च्छमा॑नाः ॥५॥
आ म॑नी॒षाम॒न्तरि॑क्षस्य॒ नृभ्य॑: स्रु॒चेव॑ घृ॒तं जु॑हवाम वि॒द्मना॑ ।
त॒र॒णि॒त्वा ये पि॒तुर॑स्य सश्चि॒र ऋ॒भवो॒ वाज॑मरुहन् दि॒वो रज॑: ॥६॥
ऋ॒भुर्न॒ इन्द्र॒: शव॑सा॒ नवी॑यानृ॒भुर्वाजे॑भि॒र्वसु॑भि॒र्वसु॑र्द॒दिः ।
यु॒ष्माकं॑ देवा॒ अव॒साह॑नि प्रि॒ये॒ ३ ऽभि ति॑ष्ठेम पृत्सु॒तीरसु॑न्वताम् ॥७॥
निश्चर्म॑ण ऋभवो॒ गाम॑पिंशत॒ सं व॒त्सेना॑सृजता मा॒तरं॒ पुन॑: ।
सौध॑न्वनासः स्वप॒स्यया॑ नरो॒ जिव्री॒ युवा॑ना पि॒तरा॑कृणोतन ॥८॥
वाजे॑भिर्नो॒ वाज॑सातावविड्ढ्यृभु॒माँ इ॑न्द्र चि॒त्रमा द॑र्षि॒ राध॑: ।
तन्नो॑ मि॒त्रो वरु॑णो मामहन्ता॒मदि॑ति॒: सिन्धु॑: पृथि॒वी उ॒त द्यौः ॥९॥