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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 101
११ कुत्स आङ्गिरसः। इन्द्रः (१ गर्भस्रावि ण्युपनिषद्)। जगती, ८-११ त्रिष्टुप्।
प्र म॒न्दिने॑ पितु॒मद॑र्चता॒ वचो॒ यः कृ॒ष्णग॑र्भा नि॒रह॑न्नृ॒जिश्व॑ना ।
अ॒व॒स्यवो॒ वृष॑णं॒ वज्र॑दक्षिणं म॒रुत्व॑न्तं स॒ख्याय॑ हवामहे ॥१॥
यो व्यं॑सं जाहृषा॒णेन॑ म॒न्युना॒ यः शम्ब॑रं॒ यो अह॒न् पिप्रु॑मव्र॒तम् ।
इन्द्रो॒ यः शुष्ण॑म॒शुषं॒ न्यावृ॑णङ् म॒रुत्व॑न्तं स॒ख्याय॑ हवामहे ॥२॥
यस्य॒ द्यावा॑पृथि॒वी पौंस्यं॑ म॒हद् यस्य॑ व्र॒ते वरु॑णो॒ यस्य॒ सूर्य॑: ।
यस्येन्द्र॑स्य॒ सिन्ध॑व॒: सश्च॑ति व्र॒तं म॒रुत्व॑न्तं स॒ख्याय॑ हवामहे ॥३॥
यो अश्वा॑नां॒ यो गवां॒ गोप॑तिर्व॒शी य आ॑रि॒तः कर्म॑णिकर्मणि स्थि॒रः ।
वी॒ळोश्चि॒दिन्द्रो॒ यो असु॑न्वतो व॒धो म॒रुत्व॑न्तं स॒ख्याय॑ हवामहे ॥४॥
यो विश्व॑स्य॒ जग॑तः प्राण॒तस्पति॒र्यो ब्र॒ह्मणे॑ प्रथ॒मो गा अवि॑न्दत् ।
इन्द्रो॒ यो दस्यूँ॒रध॑राँ अ॒वाति॑रन् म॒रुत्व॑न्तं स॒ख्याय॑ हवामहे ॥५॥
यः शूरे॑भि॒र्हव्यो॒ यश्च॑ भी॒रुभि॒र्यो धाव॑द्भिर्हू॒यते॒ यश्च॑ जि॒ग्युभि॑: ।
इन्द्रं॒ यं विश्वा॒ भुव॑ना॒भि सं॑द॒धुर्म॒रुत्व॑न्तं स॒ख्याय॑ हवामहे ॥६॥
रु॒द्राणा॑मेति प्र॒दिशा॑ विचक्ष॒णो रु॒द्रेभि॒र्योषा॑ तनुते पृ॒थु ज्रय॑: ।
इन्द्रं॑ मनी॒षा अ॒भ्य॑र्चति श्रु॒तं म॒रुत्व॑न्तं स॒ख्याय॑ हवामहे ॥७॥
यद्वा॑ मरुत्वः पर॒मे स॒धस्थे॒ यद् वा॑व॒मे वृ॒जने॑ मा॒दया॑से ।
अत॒ आ या॑ह्यध्व॒रं नो॒ अच्छा॑ त्वा॒या ह॒विश्च॑कृमा सत्यराधः ॥८॥
त्वा॒येन्द्र॒ सोमं॑ सुषुमा सुदक्ष त्वा॒या ह॒विश्च॑कृमा ब्रह्मवाहः ।
अधा॑ नियुत्व॒: सग॑णो म॒रुद्भि॑र॒स्मिन् य॒ज्ञे ब॒र्हिषि॑ मादयस्व ॥९॥
मा॒दय॑स्व॒ हरि॑भि॒र्ये त॑ इन्द्र॒ वि ष्य॑स्व॒ शिप्रे॒ वि सृ॑जस्व॒ धेने॑ ।
आ त्वा॑ सुशिप्र॒ हर॑यो वहन्तू॒शन् ह॒व्यानि॒ प्रति॑ नो जुषस्व ॥१०॥
म॒रुत्स्तो॑त्रस्य वृ॒जन॑स्य गो॒पा व॒यमिन्द्रे॑ण सनुयाम॒ वाज॑म् ।
तन्नो॑ मि॒त्रो वरु॑णो मामहन्ता॒मदि॑ति॒: सिन्धु॑: पृथि॒वी उ॒त द्यौः ॥११॥