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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 082
A
A+
६ गोतमो राहूगणः। इन्द्रः। पंक्तिः, ६ जगती।
उपो॒ षु शृ॑णु॒ही गिरो॒ मघ॑व॒न् मात॑था इव ।
य॒दा न॑: सू॒नृता॑वत॒: कर॒ आद॒र्थया॑स॒ इद् योजा॒ न्वि॑न्द्र ते॒ हरी॑ ॥१॥
अक्ष॒न्नमी॑मदन्त॒ ह्यव॑ प्रि॒या अ॑धूषत ।
अस्तो॑षत॒ स्वभा॑नवो॒ विप्रा॒ नवि॑ष्ठया म॒ती योजा॒ न्वि॑न्द्र ते॒ हरी॑ ॥२॥
सु॒सं॒दृशं॑ त्वा व॒यं मघ॑वन् वन्दिषी॒महि॑ ।
प्र नू॒नं पू॒र्णव॑न्धुरः स्तु॒तो या॑हि॒ वशाँ॒ अनु॒ योजा॒ न्वि॑न्द्र ते॒ हरी॑ ॥३॥
स घा॒ तं वृष॑णं॒ रथ॒मधि॑ तिष्ठाति गो॒विद॑म् ।
यः पात्रं॑ हारियोज॒नं पू॒र्णमि॑न्द्र॒ चिके॑तति॒ योजा॒ न्वि॑न्द्र ते॒ हरी॑ ॥४॥
यु॒क्तस्ते॑ अस्तु॒ दक्षि॑ण उ॒त स॒व्यः श॑तक्रतो ।
तेन॑ जा॒यामुप॑ प्रि॒यां म॑न्दा॒नो या॒ह्यन्ध॑सो॒ योजा॒ न्वि॑न्द्र ते॒ हरी॑ ॥५॥
यु॒नज्मि॑ ते॒ ब्रह्म॑णा के॒शिना॒ हरी॒ उप॒ प्र या॑हि दधि॒षे गभ॑स्त्योः ।
उत् त्वा॑ सु॒तासो॑ रभ॒सा अ॑मन्दिषुः पूष॒ण्वान् व॑ज्रि॒न्त्समु॒ पत्न्या॑मदः ॥६॥
उपो॒ षु शृ॑णु॒ही गिरो॒ मघ॑व॒न् मात॑था इव ।
य॒दा न॑: सू॒नृता॑वत॒: कर॒ आद॒र्थया॑स॒ इद् योजा॒ न्वि॑न्द्र ते॒ हरी॑ ॥१॥
अक्ष॒न्नमी॑मदन्त॒ ह्यव॑ प्रि॒या अ॑धूषत ।
अस्तो॑षत॒ स्वभा॑नवो॒ विप्रा॒ नवि॑ष्ठया म॒ती योजा॒ न्वि॑न्द्र ते॒ हरी॑ ॥२॥
सु॒सं॒दृशं॑ त्वा व॒यं मघ॑वन् वन्दिषी॒महि॑ ।
प्र नू॒नं पू॒र्णव॑न्धुरः स्तु॒तो या॑हि॒ वशाँ॒ अनु॒ योजा॒ न्वि॑न्द्र ते॒ हरी॑ ॥३॥
स घा॒ तं वृष॑णं॒ रथ॒मधि॑ तिष्ठाति गो॒विद॑म् ।
यः पात्रं॑ हारियोज॒नं पू॒र्णमि॑न्द्र॒ चिके॑तति॒ योजा॒ न्वि॑न्द्र ते॒ हरी॑ ॥४॥
यु॒क्तस्ते॑ अस्तु॒ दक्षि॑ण उ॒त स॒व्यः श॑तक्रतो ।
तेन॑ जा॒यामुप॑ प्रि॒यां म॑न्दा॒नो या॒ह्यन्ध॑सो॒ योजा॒ न्वि॑न्द्र ते॒ हरी॑ ॥५॥
यु॒नज्मि॑ ते॒ ब्रह्म॑णा के॒शिना॒ हरी॒ उप॒ प्र या॑हि दधि॒षे गभ॑स्त्योः ।
उत् त्वा॑ सु॒तासो॑ रभ॒सा अ॑मन्दिषुः पूष॒ण्वान् व॑ज्रि॒न्त्समु॒ पत्न्या॑मदः ॥६॥