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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 037
A
A+
१५ कण्वो घौरः। मरुतः। गायत्री।
क्री॒ळं व॒: शर्धो॒ मारु॑तमन॒र्वाणं॑ रथे॒शुभ॑म् । कण्वा॑ अ॒भि प्र गा॑यत ॥१॥
ये पृष॑तीभिर्ऋ॒ष्टिभि॑: सा॒कं वाशी॑भिर॒ञ्जिभि॑: । अजा॑यन्त॒ स्वभा॑नवः ॥२॥
इ॒हेव॑ शृण्व एषां॒ कशा॒ हस्ते॑षु॒ यद् वदा॑न् । नि याम॑ञ्चि॒त्रमृ॑ञ्जते ॥३॥
प्र व॒: शर्धा॑य॒ घृष्व॑ये त्वे॒षद्यु॑म्नाय शु॒ष्मिणे॑ । दे॒वत्तं॒ ब्रह्म॑ गायत ॥४॥
प्र शं॑सा॒ गोष्वघ्न्यं॑ क्री॒ळं यच्छर्धो॒ मारु॑तम् । जम्भे॒ रस॑स्य वावृधे ॥५॥
को वो॒ वर्षि॑ष्ठ॒ आ न॑रो दि॒वश्च॒ ग्मश्च॑ धूतयः । यत्सी॒मन्तं॒ न धू॑नु॒थ ॥६॥
नि वो॒ यामा॑य॒ मानु॑षो द॒ध्र उ॒ग्राय॑ म॒न्यवे॑ । जिही॑त॒ पर्व॑तो गि॒रिः ॥७॥
येषा॒मज्मे॑षु पृथि॒वी जु॑जु॒र्वाँ इ॑व वि॒श्पति॑: । भि॒या यामे॑षु॒ रेज॑ते ॥८॥
स्थि॒रं हि जान॑मेषां॒ वयो॑ मा॒तुर्निरे॑तवे । यत् सी॒मनु॑ द्वि॒ता शव॑: ॥९॥
उदु॒ त्ये सू॒नवो॒ गिर॒: काष्ठा॒ अज्मे॑ष्वत्नत । वा॒श्रा अ॑भि॒ज्ञु यात॑वे ॥१०॥
त्यं चि॑द् घा दी॒र्घं पृ॒थुं मि॒हो नपा॑त॒ममृ॑ध्रम् । प्र च्या॑वयन्ति॒ याम॑भिः ॥११॥
मरु॑तो॒ यद्ध॑ वो॒ बलं॒ जनाँ॑ अचुच्यवीतन । गि॒रीँर॑चुच्यवीतन ॥१२॥
यद्ध॒ यान्ति॑ म॒रुत॒: सं ह॑ ब्रुव॒तेऽध्व॒न्ना । शृ॒णोति॒ कश्चि॑देषाम् ॥१३॥
प्र या॑त॒ शीभ॑मा॒शुभि॒: सन्ति॒ कण्वे॑षु वो॒ दुव॑: । तत्रो॒ षु मा॑दयाध्वै ॥१४॥
अस्ति॒ हि ष्मा॒ मदा॑य व॒: स्मसि॑ ष्मा व॒यमे॑षाम् । विश्वं॑ चि॒दायु॑र्जी॒वसे॑ ॥१५॥
क्री॒ळं व॒: शर्धो॒ मारु॑तमन॒र्वाणं॑ रथे॒शुभ॑म् । कण्वा॑ अ॒भि प्र गा॑यत ॥१॥
ये पृष॑तीभिर्ऋ॒ष्टिभि॑: सा॒कं वाशी॑भिर॒ञ्जिभि॑: । अजा॑यन्त॒ स्वभा॑नवः ॥२॥
इ॒हेव॑ शृण्व एषां॒ कशा॒ हस्ते॑षु॒ यद् वदा॑न् । नि याम॑ञ्चि॒त्रमृ॑ञ्जते ॥३॥
प्र व॒: शर्धा॑य॒ घृष्व॑ये त्वे॒षद्यु॑म्नाय शु॒ष्मिणे॑ । दे॒वत्तं॒ ब्रह्म॑ गायत ॥४॥
प्र शं॑सा॒ गोष्वघ्न्यं॑ क्री॒ळं यच्छर्धो॒ मारु॑तम् । जम्भे॒ रस॑स्य वावृधे ॥५॥
को वो॒ वर्षि॑ष्ठ॒ आ न॑रो दि॒वश्च॒ ग्मश्च॑ धूतयः । यत्सी॒मन्तं॒ न धू॑नु॒थ ॥६॥
नि वो॒ यामा॑य॒ मानु॑षो द॒ध्र उ॒ग्राय॑ म॒न्यवे॑ । जिही॑त॒ पर्व॑तो गि॒रिः ॥७॥
येषा॒मज्मे॑षु पृथि॒वी जु॑जु॒र्वाँ इ॑व वि॒श्पति॑: । भि॒या यामे॑षु॒ रेज॑ते ॥८॥
स्थि॒रं हि जान॑मेषां॒ वयो॑ मा॒तुर्निरे॑तवे । यत् सी॒मनु॑ द्वि॒ता शव॑: ॥९॥
उदु॒ त्ये सू॒नवो॒ गिर॒: काष्ठा॒ अज्मे॑ष्वत्नत । वा॒श्रा अ॑भि॒ज्ञु यात॑वे ॥१०॥
त्यं चि॑द् घा दी॒र्घं पृ॒थुं मि॒हो नपा॑त॒ममृ॑ध्रम् । प्र च्या॑वयन्ति॒ याम॑भिः ॥११॥
मरु॑तो॒ यद्ध॑ वो॒ बलं॒ जनाँ॑ अचुच्यवीतन । गि॒रीँर॑चुच्यवीतन ॥१२॥
यद्ध॒ यान्ति॑ म॒रुत॒: सं ह॑ ब्रुव॒तेऽध्व॒न्ना । शृ॒णोति॒ कश्चि॑देषाम् ॥१३॥
प्र या॑त॒ शीभ॑मा॒शुभि॒: सन्ति॒ कण्वे॑षु वो॒ दुव॑: । तत्रो॒ षु मा॑दयाध्वै ॥१४॥
अस्ति॒ हि ष्मा॒ मदा॑य व॒: स्मसि॑ ष्मा व॒यमे॑षाम् । विश्वं॑ चि॒दायु॑र्जी॒वसे॑ ॥१५॥