SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 01
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 066
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
- 088
- 089
- 090
- 091
- 092
- 093
- 094
- 095
- 096
- 097
- 098
- 099
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
- 115
- 116
- 117
- 118
- 119
- 120
- 121
- 122
- 123
- 124
- 125
- 126
- 127
- 128
- 129
- 130
- 131
- 132
- 133
- 134
- 135
- 136
- 137
- 138
- 139
- 140
- 141
- 142
- 143
- 144
- 145
- 146
- 147
- 148
- 149
- 150
- 151
- 152
- 153
- 154
- 155
- 156
- 157
- 158
- 159
- 160
- 161
- 162
- 163
- 164
- 165
- 166
- 167
- 168
- 169
- 170
- 171
- 172
- 173
- 174
- 175
- 176
- 177
- 178
- 179
- 180
- 181
- 182
- 183
- 184
- 185
- 186
- 187
- 188
- 189
- 190
- 191
Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 025
A
A+
२१ आजीगर्तिः शुनः शेपः स कृत्रिमो वैश्वामित्रो देवरातः। वरुणः। गायत्री।
यच्चि॒द्धि ते॒ विशो॑ यथा॒ प्र दे॑व वरुण व्र॒तम् । मि॒नी॒मसि॒ द्यवि॑द्यवि ॥१॥
मा नो॑ व॒धाय॑ ह॒त्नवे॑ जिहीळा॒नस्य॑ रीरधः । मा हृ॑णा॒नस्य॑ म॒न्यवे॑ ॥२॥
वि मृ॑ळी॒काय॑ ते॒ मनो॑ र॒थीरश्वं॒ न संदि॑तम् । गी॒र्भिर्व॑रुण सीमहि ॥३॥
परा॒ हि मे॒ विम॑न्यव॒: पत॑न्ति॒ वस्य॑इष्टये । वयो॒ न व॑स॒तीरुप॑ ॥४॥
क॒दा क्ष॑त्र॒श्रियं॒ नर॒मा वरु॑णं करामहे । मृ॒ळी॒कायो॑रु॒चक्ष॑सम् ॥५॥
तदित् स॑मा॒नमा॑शाते॒ वेन॑न्ता॒ न प्र यु॑च्छतः । धृ॒तव्र॑ताय दा॒शुषे॑ ॥६॥
वेदा॒ यो वी॒नां प॒दम॒न्तरि॑क्षेण॒ पत॑ताम् । वेद॑ ना॒वः स॑मु॒द्रिय॑: ॥७॥
वेद॑ मा॒सो धृ॒तव्र॑तो॒ द्वाद॑श प्र॒जाव॑तः । वेदा॒ य उ॑प॒जाय॑ते ॥८॥
वेद॒ वात॑स्य वर्त॒निमु॒रोॠ॒ष्वस्य॑ बृह॒तः । वेदा॒ ये अ॒ध्यास॑ते ॥९॥
नि ष॑साद धृ॒तव्र॑तो॒ वरु॑णः प॒स्त्या॒३स्वा । साम्रा॑ज्याय सु॒क्रतु॑: ॥१०॥
अतो॒ विश्वा॒न्यद्भु॑ता चिकि॒त्वाँ अ॒भि प॑श्यति । कृ॒तानि॒ या च॒ कर्त्वा॑ ॥११॥
स नो॑ वि॒श्वाहा॑ सु॒क्रतु॑रादि॒त्यः सु॒पथा॑ करत् । प्र ण॒ आयूं॑षि तारिषत् ॥१२॥
बिभ्र॑द् द्र॒पिं हि॑र॒ण्ययं॒ वरु॑णो वस्त नि॒र्णिज॑म् । परि॒ स्पशो॒ नि षे॑दिरे ॥१३॥
न यं दिप्स॑न्ति दि॒प्सवो॒ न द्रुह्वा॑णो॒ जना॑नाम् । न दे॒वम॒भिमा॑तयः ॥१४॥
उ॒त यो मानु॑षे॒ष्वा यश॑श्च॒क्रे असा॒म्या । अ॒स्माक॑मु॒दरे॒ष्वा ॥१५॥
परा॑ मे यन्ति धी॒तयो॒ गावो॒ न गव्यू॑ती॒रनु॑ । इ॒च्छन्ती॑रुरु॒चक्ष॑सम् ॥१६॥
सं नु वो॑चावहै॒ पुन॒र्यतो॑ मे॒ मध्वाभृ॑तम् । होते॑व॒ क्षद॑से प्रि॒यम् ॥१७॥
दर्शं॒ नु वि॒श्वद॑र्शतं॒ दर्शं॒ रथ॒मधि॒ क्षमि॑ । ए॒ता जु॑षत मे॒ गिर॑: ॥१८॥
इ॒मं मे॑ वरुण श्रुधी॒ हव॑म॒द्या च॑ मृळय । त्वाम॑व॒स्युरा च॑के ॥१९॥
त्वं विश्व॑स्यू मेधिर दि॒वश्च॒ ग्मश्च॑ राजसि । स याम॑नि॒ प्रति॑ श्रुधि ॥२०॥
उदु॑त्त॒मं मु॑मुग्धि नो॒ वि पाशं॑ मध्य॒मं चृ॑त । अवा॑ध॒मानि॑ जी॒वसे॑ ॥२१॥
यच्चि॒द्धि ते॒ विशो॑ यथा॒ प्र दे॑व वरुण व्र॒तम् । मि॒नी॒मसि॒ द्यवि॑द्यवि ॥१॥
मा नो॑ व॒धाय॑ ह॒त्नवे॑ जिहीळा॒नस्य॑ रीरधः । मा हृ॑णा॒नस्य॑ म॒न्यवे॑ ॥२॥
वि मृ॑ळी॒काय॑ ते॒ मनो॑ र॒थीरश्वं॒ न संदि॑तम् । गी॒र्भिर्व॑रुण सीमहि ॥३॥
परा॒ हि मे॒ विम॑न्यव॒: पत॑न्ति॒ वस्य॑इष्टये । वयो॒ न व॑स॒तीरुप॑ ॥४॥
क॒दा क्ष॑त्र॒श्रियं॒ नर॒मा वरु॑णं करामहे । मृ॒ळी॒कायो॑रु॒चक्ष॑सम् ॥५॥
तदित् स॑मा॒नमा॑शाते॒ वेन॑न्ता॒ न प्र यु॑च्छतः । धृ॒तव्र॑ताय दा॒शुषे॑ ॥६॥
वेदा॒ यो वी॒नां प॒दम॒न्तरि॑क्षेण॒ पत॑ताम् । वेद॑ ना॒वः स॑मु॒द्रिय॑: ॥७॥
वेद॑ मा॒सो धृ॒तव्र॑तो॒ द्वाद॑श प्र॒जाव॑तः । वेदा॒ य उ॑प॒जाय॑ते ॥८॥
वेद॒ वात॑स्य वर्त॒निमु॒रोॠ॒ष्वस्य॑ बृह॒तः । वेदा॒ ये अ॒ध्यास॑ते ॥९॥
नि ष॑साद धृ॒तव्र॑तो॒ वरु॑णः प॒स्त्या॒३स्वा । साम्रा॑ज्याय सु॒क्रतु॑: ॥१०॥
अतो॒ विश्वा॒न्यद्भु॑ता चिकि॒त्वाँ अ॒भि प॑श्यति । कृ॒तानि॒ या च॒ कर्त्वा॑ ॥११॥
स नो॑ वि॒श्वाहा॑ सु॒क्रतु॑रादि॒त्यः सु॒पथा॑ करत् । प्र ण॒ आयूं॑षि तारिषत् ॥१२॥
बिभ्र॑द् द्र॒पिं हि॑र॒ण्ययं॒ वरु॑णो वस्त नि॒र्णिज॑म् । परि॒ स्पशो॒ नि षे॑दिरे ॥१३॥
न यं दिप्स॑न्ति दि॒प्सवो॒ न द्रुह्वा॑णो॒ जना॑नाम् । न दे॒वम॒भिमा॑तयः ॥१४॥
उ॒त यो मानु॑षे॒ष्वा यश॑श्च॒क्रे असा॒म्या । अ॒स्माक॑मु॒दरे॒ष्वा ॥१५॥
परा॑ मे यन्ति धी॒तयो॒ गावो॒ न गव्यू॑ती॒रनु॑ । इ॒च्छन्ती॑रुरु॒चक्ष॑सम् ॥१६॥
सं नु वो॑चावहै॒ पुन॒र्यतो॑ मे॒ मध्वाभृ॑तम् । होते॑व॒ क्षद॑से प्रि॒यम् ॥१७॥
दर्शं॒ नु वि॒श्वद॑र्शतं॒ दर्शं॒ रथ॒मधि॒ क्षमि॑ । ए॒ता जु॑षत मे॒ गिर॑: ॥१८॥
इ॒मं मे॑ वरुण श्रुधी॒ हव॑म॒द्या च॑ मृळय । त्वाम॑व॒स्युरा च॑के ॥१९॥
त्वं विश्व॑स्यू मेधिर दि॒वश्च॒ ग्मश्च॑ राजसि । स याम॑नि॒ प्रति॑ श्रुधि ॥२०॥
उदु॑त्त॒मं मु॑मुग्धि नो॒ वि पाशं॑ मध्य॒मं चृ॑त । अवा॑ध॒मानि॑ जी॒वसे॑ ॥२१॥