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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 104
A
A+
९ कुत्स आङ्गिरसः। इन्द्रः। त्रिष्टुप्।
योनि॑ष्ट इन्द्र नि॒षदे॑ अकारि॒ तमा नि षी॑द स्वा॒नो नार्वा॑ ।
वि॒मुच्या॒ वयो॑ऽव॒सायाश्वा॑न् दो॒षा वस्तो॒र्वही॑यसः प्रपि॒त्वे ॥१॥
ओ त्ये नर॒ इन्द्र॑मू॒तये॑ गु॒र्नू चि॒त् तान् त्स॒द्यो अध्व॑नो जगम्यात् ।
दे॒वासो॑ म॒न्युं दास॑स्य श्चम्न॒न् ते न॒ आ व॑क्षन् त्सुवि॒ताय॒ वर्ण॑म् ॥२॥
अव॒ त्मना॑ भरते॒ केत॑वेदा॒ अव॒ त्मना॑ भरते॒ फेन॑मु॒दन् ।
क्षी॒रेण॑ स्नात॒: कुय॑वस्य॒ योषे॑ ह॒ते ते स्या॑तां प्रव॒णे शिफा॑याः ॥३॥
यु॒योप॒ नाभि॒रुप॑रस्या॒योः प्र पूर्वा॑भिस्तिरते॒ राष्टि॒ शूर॑: ।
अ॒ञ्ज॒सी कु॑लि॒शी वी॒रप॑त्नी॒ पयो॑ हिन्वा॒ना उ॒दभि॑र्भरन्ते ॥४॥
प्रति॒ यत् स्या नीथाद॑र्शि॒ दस्यो॒रोको॒ नाच्छा॒ सद॑नं जान॒ती गा॑त् ।
अध॑ स्मा नो मघवञ्चर्कृ॒तादिन्मा नो॑ म॒घेव॑ निष्ष॒पी परा॑ दाः ॥५॥
स त्वं न॑ इन्द्र॒ सूर्ये॒ सो अ॒प्स्व॑नागा॒स्त्व आ भ॑ज जीवशं॒से ।
मान्त॑रां॒ भुज॒मा री॑रिषो न॒: श्रद्धि॑तं ते मह॒त इ॑न्द्रि॒याय॑ ॥६॥
अधा॑ मन्ये॒ श्रत् ते अस्मा अधायि॒ वृषा॑ चोदस्व मह॒ते धना॑य ।
मा नो॒ अकृ॑ते पुरुहूत॒ योना॒विन्द्र॒ क्षुध्य॑द्भ्यो॒ वय॑ आसु॒तिं दा॑: ॥७॥
मा नो॑ वधीरिन्द्र॒ मा परा॑ दा॒ मा न॑: प्रि॒या भोज॑नानि॒ प्र मो॑षीः ।
आ॒ण्डा मा नो॑ मघवञ्छक्र॒ निर्भे॒न्मा न॒: पात्रा॑ भेत् स॒हजा॑नुषाणि ॥८॥
अ॒र्वाङेहि॒ सोम॑कामं त्वाहुर॒यं सु॒तस्तस्य॑ पिबा॒ मदा॑य ।
उ॒रु॒व्यचा॑ ज॒ठर॒ आ वृ॑षस्व पि॒तेव॑ नः शृणुहि हू॒यमा॑नः ॥९॥
योनि॑ष्ट इन्द्र नि॒षदे॑ अकारि॒ तमा नि षी॑द स्वा॒नो नार्वा॑ ।
वि॒मुच्या॒ वयो॑ऽव॒सायाश्वा॑न् दो॒षा वस्तो॒र्वही॑यसः प्रपि॒त्वे ॥१॥
ओ त्ये नर॒ इन्द्र॑मू॒तये॑ गु॒र्नू चि॒त् तान् त्स॒द्यो अध्व॑नो जगम्यात् ।
दे॒वासो॑ म॒न्युं दास॑स्य श्चम्न॒न् ते न॒ आ व॑क्षन् त्सुवि॒ताय॒ वर्ण॑म् ॥२॥
अव॒ त्मना॑ भरते॒ केत॑वेदा॒ अव॒ त्मना॑ भरते॒ फेन॑मु॒दन् ।
क्षी॒रेण॑ स्नात॒: कुय॑वस्य॒ योषे॑ ह॒ते ते स्या॑तां प्रव॒णे शिफा॑याः ॥३॥
यु॒योप॒ नाभि॒रुप॑रस्या॒योः प्र पूर्वा॑भिस्तिरते॒ राष्टि॒ शूर॑: ।
अ॒ञ्ज॒सी कु॑लि॒शी वी॒रप॑त्नी॒ पयो॑ हिन्वा॒ना उ॒दभि॑र्भरन्ते ॥४॥
प्रति॒ यत् स्या नीथाद॑र्शि॒ दस्यो॒रोको॒ नाच्छा॒ सद॑नं जान॒ती गा॑त् ।
अध॑ स्मा नो मघवञ्चर्कृ॒तादिन्मा नो॑ म॒घेव॑ निष्ष॒पी परा॑ दाः ॥५॥
स त्वं न॑ इन्द्र॒ सूर्ये॒ सो अ॒प्स्व॑नागा॒स्त्व आ भ॑ज जीवशं॒से ।
मान्त॑रां॒ भुज॒मा री॑रिषो न॒: श्रद्धि॑तं ते मह॒त इ॑न्द्रि॒याय॑ ॥६॥
अधा॑ मन्ये॒ श्रत् ते अस्मा अधायि॒ वृषा॑ चोदस्व मह॒ते धना॑य ।
मा नो॒ अकृ॑ते पुरुहूत॒ योना॒विन्द्र॒ क्षुध्य॑द्भ्यो॒ वय॑ आसु॒तिं दा॑: ॥७॥
मा नो॑ वधीरिन्द्र॒ मा परा॑ दा॒ मा न॑: प्रि॒या भोज॑नानि॒ प्र मो॑षीः ।
आ॒ण्डा मा नो॑ मघवञ्छक्र॒ निर्भे॒न्मा न॒: पात्रा॑ भेत् स॒हजा॑नुषाणि ॥८॥
अ॒र्वाङेहि॒ सोम॑कामं त्वाहुर॒यं सु॒तस्तस्य॑ पिबा॒ मदा॑य ।
उ॒रु॒व्यचा॑ ज॒ठर॒ आ वृ॑षस्व पि॒तेव॑ नः शृणुहि हू॒यमा॑नः ॥९॥