SELECT MANDALA
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 090
A
A+
९ गोतमो राहूगणः। विश्वेदेवाः,। गायत्री, ९ अनुष्टुप्।
ऋ॒जु॒नी॒ती नो॒ वरु॑णो मि॒त्रो न॑यतु वि॒द्वान् । अ॒र्य॒मा दे॒वैः स॒जोषा॑: ॥१॥
ते हि वस्वो॒ वस॑वाना॒स्ते अप्र॑मूरा॒ महो॑भिः । व्र॒ता र॑क्षन्ते वि॒श्वाहा॑ ॥२॥
ते अ॒स्मभ्यं॒ शर्म॑ यंसन्न॒मृता॒ मर्त्ये॑भ्यः । बाध॑माना॒ अप॒ द्विष॑: ॥३॥
वि न॑: प॒थः सु॑वि॒ताय॑ चि॒यन्त्विन्द्रो॑ म॒रुत॑: । पू॒षा भगो॒ वन्द्या॑सः ॥४॥
उ॒त नो॒ धियो॒ गोअ॑ग्रा॒: पूष॒न् विष्ण॒वेव॑यावः । कर्ता॑ नः स्वस्ति॒मत॑: ॥५॥
मधु॒ वाता॑ ऋताय॒ते मधु॑ क्षरन्ति॒ सिन्ध॑वः । माध्वी॑र्नः स॒न्त्वोष॑धीः ॥६॥
मधु॒ नक्त॑मु॒तोषसो॒ मधु॑म॒त् पार्थि॑वं॒ रज॑: । मधु॒ द्यौर॑स्तु नः पि॒ता ॥७॥
मधु॑मान्नो॒ वन॒स्पति॒र्मधु॑माँ अस्तु॒ सूर्य॑: । माध्वी॒र्गावो॑ भवन्तु नः ॥८॥
शं नो॑ मि॒त्रः शं वरु॑ण॒: शं नो॑ भवत्वर्य॒मा । शं न॒ इन्द्रो॒ बृह॒स्पति॒: शं नो॒ विष्णु॑रुरुक्र॒मः ॥९॥
ऋ॒जु॒नी॒ती नो॒ वरु॑णो मि॒त्रो न॑यतु वि॒द्वान् । अ॒र्य॒मा दे॒वैः स॒जोषा॑: ॥१॥
ते हि वस्वो॒ वस॑वाना॒स्ते अप्र॑मूरा॒ महो॑भिः । व्र॒ता र॑क्षन्ते वि॒श्वाहा॑ ॥२॥
ते अ॒स्मभ्यं॒ शर्म॑ यंसन्न॒मृता॒ मर्त्ये॑भ्यः । बाध॑माना॒ अप॒ द्विष॑: ॥३॥
वि न॑: प॒थः सु॑वि॒ताय॑ चि॒यन्त्विन्द्रो॑ म॒रुत॑: । पू॒षा भगो॒ वन्द्या॑सः ॥४॥
उ॒त नो॒ धियो॒ गोअ॑ग्रा॒: पूष॒न् विष्ण॒वेव॑यावः । कर्ता॑ नः स्वस्ति॒मत॑: ॥५॥
मधु॒ वाता॑ ऋताय॒ते मधु॑ क्षरन्ति॒ सिन्ध॑वः । माध्वी॑र्नः स॒न्त्वोष॑धीः ॥६॥
मधु॒ नक्त॑मु॒तोषसो॒ मधु॑म॒त् पार्थि॑वं॒ रज॑: । मधु॒ द्यौर॑स्तु नः पि॒ता ॥७॥
मधु॑मान्नो॒ वन॒स्पति॒र्मधु॑माँ अस्तु॒ सूर्य॑: । माध्वी॒र्गावो॑ भवन्तु नः ॥८॥
शं नो॑ मि॒त्रः शं वरु॑ण॒: शं नो॑ भवत्वर्य॒मा । शं न॒ इन्द्रो॒ बृह॒स्पति॒: शं नो॒ विष्णु॑रुरुक्र॒मः ॥९॥