SELECT MANDALA
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Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 088
A
A+
६ गोतमो राहूगणः। मरुतः। त्रिष्टुप्, १, ६ प्रस्तारपंक्तिः, ५ विराड् रुपा।
आ वि॒द्युन्म॑द्भिर्मरुतः स्व॒र्कै रथे॑भिर्यात ऋष्टि॒मद्भि॒रश्व॑पर्णैः ।
आ वर्षि॑ष्ठया न इ॒षा वयो॒ न प॑प्तता सुमायाः ॥१॥
ते॑ऽरु॒णेभि॒र्वर॒मा पि॒शङ्गै॑: शु॒भे कं या॑न्ति रथ॒तूर्भि॒रश्वै॑: ।
रु॒क्मो न चि॒त्रः स्वधि॑तीवान् प॒व्या रथ॑स्य जङ्घनन्त॒ भूम॑ ॥२॥
श्रि॒ये कं वो॒ अधि॑ त॒नूषु॒ वाशी॑र्मे॒धा वना॒ न कृ॑णवन्त ऊ॒र्ध्वा ।
यु॒ष्मभ्यं॒ कं म॑रुतः सुजातास्तुविद्यु॒म्नासो॑ धनयन्ते॒ अद्रि॑म् ॥३॥
अहा॑नि॒ गृध्रा॒: पर्या व॒ आगु॑रि॒मां धियं॑ वार्का॒र्यां च॑ दे॒वीम् ।
ब्रह्म॑ कृ॒ण्वन्तो॒ गोत॑मासो अ॒र्कैरू॒र्ध्वं नु॑नुद्र उत्स॒धिं पिब॑ध्यै ॥४॥
ए॒तत् त्यन्न योज॑नमचेति स॒स्वर्ह॒ यन्म॑रुतो॒ गोत॑मो वः ।
पश्य॒न् हिर॑ण्यचक्रा॒नयो॑दंष्ट्रान् वि॒धाव॑तो व॒राहू॑न् ॥५॥
ए॒षा स्या वो॑ मरुतोऽनुभ॒र्त्री प्रति॑ ष्टोभति वा॒घतो॒ न वाणी॑ ।
अस्तो॑भय॒द् वृथा॑सा॒मनु॑ स्व॒धां गभ॑स्त्योः ॥६॥
आ वि॒द्युन्म॑द्भिर्मरुतः स्व॒र्कै रथे॑भिर्यात ऋष्टि॒मद्भि॒रश्व॑पर्णैः ।
आ वर्षि॑ष्ठया न इ॒षा वयो॒ न प॑प्तता सुमायाः ॥१॥
ते॑ऽरु॒णेभि॒र्वर॒मा पि॒शङ्गै॑: शु॒भे कं या॑न्ति रथ॒तूर्भि॒रश्वै॑: ।
रु॒क्मो न चि॒त्रः स्वधि॑तीवान् प॒व्या रथ॑स्य जङ्घनन्त॒ भूम॑ ॥२॥
श्रि॒ये कं वो॒ अधि॑ त॒नूषु॒ वाशी॑र्मे॒धा वना॒ न कृ॑णवन्त ऊ॒र्ध्वा ।
यु॒ष्मभ्यं॒ कं म॑रुतः सुजातास्तुविद्यु॒म्नासो॑ धनयन्ते॒ अद्रि॑म् ॥३॥
अहा॑नि॒ गृध्रा॒: पर्या व॒ आगु॑रि॒मां धियं॑ वार्का॒र्यां च॑ दे॒वीम् ।
ब्रह्म॑ कृ॒ण्वन्तो॒ गोत॑मासो अ॒र्कैरू॒र्ध्वं नु॑नुद्र उत्स॒धिं पिब॑ध्यै ॥४॥
ए॒तत् त्यन्न योज॑नमचेति स॒स्वर्ह॒ यन्म॑रुतो॒ गोत॑मो वः ।
पश्य॒न् हिर॑ण्यचक्रा॒नयो॑दंष्ट्रान् वि॒धाव॑तो व॒राहू॑न् ॥५॥
ए॒षा स्या वो॑ मरुतोऽनुभ॒र्त्री प्रति॑ ष्टोभति वा॒घतो॒ न वाणी॑ ।
अस्तो॑भय॒द् वृथा॑सा॒मनु॑ स्व॒धां गभ॑स्त्योः ॥६॥