SELECT MANDALA
SELECT SUKTA OF MANDALA 01
- 001
- 002
- 003
- 004
- 005
- 006
- 007
- 008
- 009
- 010
- 011
- 012
- 013
- 014
- 015
- 016
- 017
- 018
- 019
- 020
- 021
- 022
- 023
- 024
- 025
- 026
- 027
- 028
- 029
- 030
- 031
- 032
- 033
- 034
- 035
- 036
- 037
- 038
- 039
- 040
- 041
- 042
- 043
- 044
- 045
- 046
- 047
- 048
- 049
- 050
- 051
- 052
- 053
- 054
- 055
- 056
- 057
- 058
- 059
- 060
- 061
- 062
- 063
- 064
- 065
- 066
- 067
- 068
- 069
- 070
- 071
- 072
- 073
- 074
- 075
- 076
- 077
- 078
- 079
- 080
- 081
- 082
- 083
- 084
- 085
- 086
- 087
- 088
- 089
- 090
- 091
- 092
- 093
- 094
- 095
- 096
- 097
- 098
- 099
- 100
- 101
- 102
- 103
- 104
- 105
- 106
- 107
- 108
- 109
- 110
- 111
- 112
- 113
- 114
- 115
- 116
- 117
- 118
- 119
- 120
- 121
- 122
- 123
- 124
- 125
- 126
- 127
- 128
- 129
- 130
- 131
- 132
- 133
- 134
- 135
- 136
- 137
- 138
- 139
- 140
- 141
- 142
- 143
- 144
- 145
- 146
- 147
- 148
- 149
- 150
- 151
- 152
- 153
- 154
- 155
- 156
- 157
- 158
- 159
- 160
- 161
- 162
- 163
- 164
- 165
- 166
- 167
- 168
- 169
- 170
- 171
- 172
- 173
- 174
- 175
- 176
- 177
- 178
- 179
- 180
- 181
- 182
- 183
- 184
- 185
- 186
- 187
- 188
- 189
- 190
- 191
Rigveda – Shakala Samhita – Mandala 01 Sukta 073
A
A+
१० पराशरः शाक्त्यः। अग्निः। त्रिष्टुप्।
र॒यिर्न यः पि॑तृवि॒त्तो व॑यो॒धाः सु॒प्रणी॑तिश्चिकि॒तुषो॒ न शासु॑: ।
स्यो॒न॒शीरति॑थि॒र्न प्री॑णा॒नो होते॑व॒ सद्म॑ विध॒तो वि ता॑रीत् ॥१॥
दे॒वो न यः स॑वि॒ता स॒त्यम॑न्मा॒ क्रत्वा॑ नि॒पाति॑ वृ॒जना॑नि॒ विश्वा॑ ।
पु॒रु॒प्र॒श॒स्तो अ॒मति॒र्न स॒त्य आ॒त्मेव॒ शेवो॑ दिधि॒षाय्यो॑ भूत् ॥२॥
दे॒वो न यः पृ॑थि॒वीं वि॒श्वधा॑या उप॒क्षेति॑ हि॒तमि॑त्रो॒ न राजा॑ ।
पु॒र॒:सद॑: शर्म॒सदो॒ न वी॒रा अ॑नव॒द्या पति॑जुष्टेव॒ नारी॑ ॥३॥
तं त्वा॒ नरो॒ दम॒ आ नित्य॑मि॒द्धमग्ने॒ सच॑न्त क्षि॒तिषु॑ ध्रु॒वासु॑ ।
अधि॑ द्यु॒म्नं नि द॑धु॒र्भूर्य॑स्मि॒न् भवा॑ वि॒श्वायु॑र्ध॒रुणो॑ रयी॒णाम् ॥४॥
वि पृक्षो॑ अग्ने म॒घवा॑नो अश्यु॒र्वि सू॒रयो॒ दद॑तो॒ विश्व॒मायु॑: ।
स॒नेम॒ वाजं॑ समि॒थेष्व॒र्यो भा॒गं दे॒वेषु॒ श्रव॑से॒ दधा॑नाः ॥५॥
ऋ॒तस्य॒ हि धे॒नवो॑ वावशा॒नाः स्मदू॑ध्नीः पी॒पय॑न्त॒ द्युभ॑क्ताः ।
प॒रा॒वत॑: सुम॒तिं भिक्ष॑माणा॒ वि सिन्ध॑वः स॒मया॑ सस्रु॒रद्रि॑म् ॥६॥
त्वे अ॑ग्ने सुम॒तिं भिक्ष॑माणा दि॒वि श्रवो॑ दधिरे य॒ज्ञिया॑सः ।
नक्ता॑ च च॒क्रुरु॒षसा॒ विरू॑पे कृ॒ष्णं च॒ वर्ण॑मरु॒णं च॒ सं धु॑: ॥७॥
यान् रा॒ये मर्ता॒न्त्सुषू॑दो अग्ने॒ ते स्या॑म म॒घवा॑नो व॒यं च॑ ।
छा॒येव॒ विश्वं॒ भुव॑नं सिसक्ष्यापप्रि॒वान् रोद॑सी अ॒न्तरि॑क्षम् ॥८॥
अर्व॑द्भिरग्ने॒ अर्व॑तो॒ नृभि॒र्नॄन् वी॒रैर्वी॒रान् व॑नुयामा॒ त्वोता॑: ।
ई॒शा॒नास॑: पितृवि॒त्तस्य॑ रा॒यो वि सू॒रय॑: श॒तहि॑मा नो अश्युः ॥९॥
ए॒ता ते॑ अग्न उ॒चथा॑नि वेधो॒ जुष्टा॑नि सन्तु॒ मन॑से हृ॒दे च॑ ।
श॒केम॑ रा॒यः सु॒धुरो॒ यमं॒ ते ऽधि॒ श्रवो॑ दे॒वभ॑क्तं॒ दधा॑नाः ॥१०॥
र॒यिर्न यः पि॑तृवि॒त्तो व॑यो॒धाः सु॒प्रणी॑तिश्चिकि॒तुषो॒ न शासु॑: ।
स्यो॒न॒शीरति॑थि॒र्न प्री॑णा॒नो होते॑व॒ सद्म॑ विध॒तो वि ता॑रीत् ॥१॥
दे॒वो न यः स॑वि॒ता स॒त्यम॑न्मा॒ क्रत्वा॑ नि॒पाति॑ वृ॒जना॑नि॒ विश्वा॑ ।
पु॒रु॒प्र॒श॒स्तो अ॒मति॒र्न स॒त्य आ॒त्मेव॒ शेवो॑ दिधि॒षाय्यो॑ भूत् ॥२॥
दे॒वो न यः पृ॑थि॒वीं वि॒श्वधा॑या उप॒क्षेति॑ हि॒तमि॑त्रो॒ न राजा॑ ।
पु॒र॒:सद॑: शर्म॒सदो॒ न वी॒रा अ॑नव॒द्या पति॑जुष्टेव॒ नारी॑ ॥३॥
तं त्वा॒ नरो॒ दम॒ आ नित्य॑मि॒द्धमग्ने॒ सच॑न्त क्षि॒तिषु॑ ध्रु॒वासु॑ ।
अधि॑ द्यु॒म्नं नि द॑धु॒र्भूर्य॑स्मि॒न् भवा॑ वि॒श्वायु॑र्ध॒रुणो॑ रयी॒णाम् ॥४॥
वि पृक्षो॑ अग्ने म॒घवा॑नो अश्यु॒र्वि सू॒रयो॒ दद॑तो॒ विश्व॒मायु॑: ।
स॒नेम॒ वाजं॑ समि॒थेष्व॒र्यो भा॒गं दे॒वेषु॒ श्रव॑से॒ दधा॑नाः ॥५॥
ऋ॒तस्य॒ हि धे॒नवो॑ वावशा॒नाः स्मदू॑ध्नीः पी॒पय॑न्त॒ द्युभ॑क्ताः ।
प॒रा॒वत॑: सुम॒तिं भिक्ष॑माणा॒ वि सिन्ध॑वः स॒मया॑ सस्रु॒रद्रि॑म् ॥६॥
त्वे अ॑ग्ने सुम॒तिं भिक्ष॑माणा दि॒वि श्रवो॑ दधिरे य॒ज्ञिया॑सः ।
नक्ता॑ च च॒क्रुरु॒षसा॒ विरू॑पे कृ॒ष्णं च॒ वर्ण॑मरु॒णं च॒ सं धु॑: ॥७॥
यान् रा॒ये मर्ता॒न्त्सुषू॑दो अग्ने॒ ते स्या॑म म॒घवा॑नो व॒यं च॑ ।
छा॒येव॒ विश्वं॒ भुव॑नं सिसक्ष्यापप्रि॒वान् रोद॑सी अ॒न्तरि॑क्षम् ॥८॥
अर्व॑द्भिरग्ने॒ अर्व॑तो॒ नृभि॒र्नॄन् वी॒रैर्वी॒रान् व॑नुयामा॒ त्वोता॑: ।
ई॒शा॒नास॑: पितृवि॒त्तस्य॑ रा॒यो वि सू॒रय॑: श॒तहि॑मा नो अश्युः ॥९॥
ए॒ता ते॑ अग्न उ॒चथा॑नि वेधो॒ जुष्टा॑नि सन्तु॒ मन॑से हृ॒दे च॑ ।
श॒केम॑ रा॒यः सु॒धुरो॒ यमं॒ ते ऽधि॒ श्रवो॑ दे॒वभ॑क्तं॒ दधा॑नाः ॥१०॥