Kalpa
The second Vedanga is Kalpa (ritual) which is called the arms of the Veda Purusha. It is especially intended for the proper application of the Vedic texts. The oldest Kalpasutras are those which in their contents are directly connected with the Brahmanas and Aranyakas. It was the ritual (Kalpa), the chief contents of the Brahmanas, which first received systematic treatment in the manuals called the Kalpasutras. They contain the rules in the Sutra style, referring to sacrifices, with the omission of all things which are not immediately connected with the ceremonial. They are more practical than the Brahmanas which for the most part are taken up with mystical, historical, mythological, etymological and theological discussions. They are also considered significant for the study of Vedic culture and society.
There are four types of the Kalpasutras:
(1) Shrauta-sutras, dealing with Shrauta sacrifices
(2) Grihya-sutras, dealing with the domestic ceremonies
(3) Dharma-sutras, dealing with the religious and social laws
(4) Shulba-sutras, dealing with the rules of measurement of the fire-altars etc.
Veda | Srautasutra | Sulbasutra | Grihyasutra | Dharmasutra |
Ṛgveda |
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Vasishtha Dharmasūtra | |
Śukla Yajurveda | Kātyāyana Śrautasūtra | Kātyāyana Śulbasûtra |
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Vishnu Dharmasūtra |
Kṛsna Yajurveda |
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Sāmaveda |
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Gautama Dharmasūtra | |
Atharvaveda | Vaitāna Śrautasũtra | Kauśika Gṛhyasūtra |
Links
- Vaikhānasa-Dharma-Sūtra(Prof. M. Srimannarayan Murty)
- Vaikhānasa-Śrauta-Sūtra(Prof. M. Srimannarayan Murty)
- वैदिक धर्म-संस्कारों एवं संस्कृति का समग्र जन जीवन पर प्रत्यक्ष प्रभाव (जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्री श्यामनारायणाचार्यजी महराज)
- वैदिक साहित्य का परिचय ‘कल्पसूत्र’ (पं॰ श्रीरामगोविन्दजी त्रिवेदी)
- वैदिक गृह्य सूक्तों में संस्कारीय सदाचार (डॉ॰श्रीसीतारामजी सहगल शास्त्री)
- शुल्बसूत्र एवं वास्तुशास्त्र में आधाराधेय सम्बन्ध (विद्यावाचस्पतिः डॉ0 सुन्दरनारायणझाः)
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कल्प वेदाङ्ग का सामान्य परिचय
गृह्यसूत्र एक संक्षिप्त परिचय
भारतीय संस्कृति के अनुसार मनुष्य जीवन के चार आश्रम होते हैं। आश्रम अर्थात् अवस्था। प्रथम ब्रह्मचर्य आश्रम है जो जन्म से लेकर जीवन के पच्चीस वर्ष तक होता है। द्वितीय गृहस्थ आश्रम जो छब्बीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष पर्यन्त होता है। तृतीय वानप्रस्थ आश्रम जो इक्यावन वर्ष से लेकर पचहत्तर वर्ष एवं चतुर्थ संन्यास आश्रम जो छियत्तर वर्ष से लेकर जीवन पर्यन्त होता है।
गृह्यसूत्र मनुष्य जीवन के द्वितीय अवस्था गृहस्थ आश्रम के नियमों का वर्णन करता है। गृहस्थ आश्रम के नियमों का वर्णन करने वाले सूत्र हैं अतः इनको गृह्यसूत्र कहते हैं। मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास उसके संस्कारों पर आधारित होता है, जो गर्भाधान से लेकर अन्त्येष्टि तक शास्त्रों के अनुसार सम्पादित किये जाते हैं। संस्कार शब्द सम् उपसर्ग पूर्वक कृ धातु से घञ् प्रत्यय करने पर निष्पन्न होता है, जिसका अर्थ होता है- दोषों का निराकरण करते हुए गुणों की आधान क्रिया का सम्पादन करना। गृह्य सूत्रों में सस्कारों की संख्या 16 है, जो इस प्रकार है- गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन,जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म, विद्यारम्भ, कर्णभेद, उपनयन, वेदारम्भ, समावर्तन, विवाह, केशान्त और अन्त्येष्टि।
उपर्युक्त संस्कारों की विधियां, नियम एवं संस्कार का समय इत्यादि विषय गृह्यसूत्रों में विस्तार से वर्णित है। भारतीय गृहस्थ जीवन की पवित्रता, दैवीय बल के प्रति पूर्ण आस्था का स्वरूप तथा आदर्श जीवन पद्धति का स्वरूप कर्मकाण्ड के माध्यम से गृह्यसूत्रों में व्यवस्थित रूप से अभिव्यक्त किया गया है। हमारे जीवन में नित्य प्रति जाने-अनजाने कुछ गलतियां या दोष होते हैं और इन्हीं के प्रायश्चित्त के लिए बलिवैश्वदेव, देवयज्ञ, भूतयज्ञ, मनुष्ययज्ञ, तथा पितृयज्ञ -इन पंचमहायज्ञों का विधान, गृह्यसूत्रों में विस्तृत रूप से वर्णित है। साथ ही इनमें मनुष्य जीवन के लिए उपयोगी गृहनिर्माण विधि, अपशकुन निवारण की विधियों के साथ-साथ पुनर्जन्म एवं स्वर्गादि की मान्यता पर भी प्रकाश डाला गया है।
वर्तमान समय में उपलब्ध गृह्यसूत्र इस प्रकार है-
ऋग्वेद |
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शुक्ल यजुर्वेद |
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कृष्ण यजुर्वेद |
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सामवेद |
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अथर्ववेद |
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धर्मसूत्र एक संक्षिप्त परिचय
धर्म शब्द धृञ् धारणे धातु से …. प्रत्यय करने से निष्पन्न होता है, जिसका अर्थ है धारण करना, पालन करना। धर्म शब्द का अर्थ समय के अनुसार सदा परिवर्तनशील रहा है। ऋग्वेद (01.187.01) में इसका अर्थ ‘धारक एवं पोषक’ है। यजुर्वेद माध्यन्दिन संहिता (II- 03; V-27) में धर्म शब्द का प्रयोग ‘आचरण के नियम’ के अर्थ में प्रयोग हुआ है। अथर्ववेद में धर्म शब्द ‘यज्ञयाग आदि कर्मजन्य पुण्य’ के अर्थ में प्रयोग हुआ है। छान्दोग्य उपनिषद् (02, 23) में कहा गया है कि धर्म के तीन स्कन्ध हैं।
- यज्ञ, अध्ययन और दान
- तप
- मनुष्य के कर्तव्य एवं अधिकार, वर्ण-विशेष तथा आश्रम-विशेष से सम्बन्धित व्यक्ति के रूप में उसके आचार एवं व्यवहार।
इस प्रकार धर्म शब्द अनेक अर्थों का द्योतक है, इसलिए मनुस्मृति एवं याज्ञवल्क्य स्मृति में धर्म शब्द अत्यन्त व्यापक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है।
मनुष्यधर्म के नियम, सूत्र रूप में होने के कारण इन सूत्रों को धर्मसूत्र कहते हैं। मानवीय जीवनशोधन की आचार संहिता धर्मसूत्र है। धर्मसूत्रों में व्यक्ति को समाज के योग्य एवं श्रेष्ठ मानव के रूप में निर्मित करने का प्रयास किया गया है। इन सूत्रों में समाज के व्यावहारिक पहलुओं पर विचार करते हुए मानवीय सामाजिक जीवन को व्यवस्थित करने के नियमों का वर्णन किया गया है। धर्म का स्वरूप एवं उसके उपादान, सभी वर्णों के लिए धर्म के आचार-व्यवहार, कर्तव्य-अकर्तव्य, वर्णाश्रम धर्म की व्याख्या, ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास आश्रमों के समय, नियम एवं कर्तव्यों का निर्धारण, विभिन्न जातियों एवं उपजातियों के सम्मिश्रण, सपिण्ड एवं सगोत्र परिवारों का विवेचन, अनेक प्रकार के पापों तथा उनके प्रायश्चित्तों का विधान, विभिन्न प्रकार के व्रत, अशौच, काल तथा शुद्धियों के प्रकार, अपराध तथा उनके व्यावहारिक दण्डों की प्रक्रिया, ऋण तथा उसका ब्याज, साक्षी के कर्तव्य, स्त्री, पुत्र, दत्तकपुत्र, पति के सम्बन्ध एवं कर्तव्य, उत्तराधिकारी के नियम तथा सम्पत्ति विभाजन की विधाओं आदि का विस्तृत विवेचन किया गया है।
वर्तमान समय में उपलब्ध धर्मसूत्र इस प्रकार हैं।
ऋग्वेद |
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शुक्ल यजुर्वेद |
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कृष्ण यजुर्वेद |
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साम वेद |
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शुल्बसूत्र एक संक्षिप्त परिचय
शुल्ब का अर्थ होता है –माप। भूमि के नापने के कार्य से सम्बन्ध रखनेवाले सूत्र को शुल्बसूत्र कहा जाता है। प्राचीन काल से ही मापन की प्रक्रिया प्रचलित है। किसी भी प्रकार के यज्ञ में माप की अत्यन्त आवश्यकता होती है जैसे यज्ञमण्डप का माप, यज्ञवेदियों का माप, यज्ञशाला की ऊंचाई का माप, यज्ञ कुण्ड का माप इत्यादि। इन्हीं सूत्रों में ही भूमि के चतुरस्र भाग को वृत्ताकार एवं वृत्ताकार को चतुरस्र करने के नियम है।
चतुस्रं मण्डलं चिकीर्षन् मध्यादंसे निपात्य पार्वतः परिलिख्य तत्र यदतिरिक्तं भवति तस्य तृतीयेन मण्डलं परिलिखेत्स समाधिः॥
वर्तमान समय में उपलब्ध शुल्बसूत्र इस प्रकार हैः-
शुक्ल यजुर्वेद |
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कृष्ण यजुर्वेद |
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